Monday, September 22, 2008

भारत में सक्रिय आतंकवादी संगठन

भारत में उग्रवादी संगठनों की सूची दिनोदिन बढ़ती ही जा रही है। आए दिन होने वाली आतंकवादी वारदातों में किसी नए संगठन का नाम सामने आता है, या फिर कोई नया संगठन हमले की जिम्मेदारी लेता है। जयपुर में हुए बम विस्फोटों की जिम्मेदारी इंडियन मुजाहिदीन ने ली है, हाँलाकि सुरक्षा एजेंसियों को इस दावे पर पूरा भरोसा नहीं है।

यह अल्पज्ञात आतंकी संगठन पहले भी कुछ वारदातों की जिम्मेदारी ले चुका है। केंद्रीय गृह मंत्रालय राज्य सरकारों की पुलिस और खुफिया तंत्र से मिली जानकारी के आधार पर इन उग्रवादी और पृथकतावादी संगठनों पर नजर रखता है और इनके खिलाफ सतत कार्रवाई चलती रहती है।

केंद्र सरकार विधि विरुद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम 2004 के तहत 32 गिरोहों को आतंकवादी संगठन के रूप में प्रतिबंधित कर चुकी है।

प्रतिबंधित उग्रवादी संगठन
* बब्बर खालसा इंटरनेशनल
* खालिस्तान कमांडो फोर्स
* खालिस्तान जिंदाबाद फोर्स
* इंटरनेशनल सिख यूथ फेडरेशन
* लश्कर-ए-तोइबा/पासवान-ए-अहले हदीस
* जैश-ए-मोहम्मद/तहरीक-ए-फुरकान
*हरकत-उल- मुजाहिनद्दीन- हरकत-उल- जेहाद-ए-इस्लामी
* हिज्ब-उल-मुजाहिद्दीनर, पीर पंजाब रेजीमेंट
* अल-उमर-इस्लामिक फ्रंट
* यूनाइटेड लिब्रेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा)
* नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट बोडोलेंड (एनडीएफबी)
* पीपल्स लिब्रेशन आमी (पीएलए)
* यूनाइटेड नेशनल लिब्रेशन फ्रंट (यहव, एनएलएफ)
* पीपल्स रिवोल्यूशनरी पार्टी ऑफ कांग्लेईपाक (पीआरईपीएके)
* कांग्लेईपाक कम्युनिस्ट पार्टी (केसीपी)
* कैंग्लई याओल कन्चालुम (केवाईकेएल)
* मणिपुर पीपल्स लिब्रेशन फ्रंट (एमपीएलफ)
* आल त्रिपुरा टाइगर फोर्स
* नेशनल लिब्रेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा
* लिब्रेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (एलटीटीई)
* स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया
* दीनदार अंजुमन
*कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) पीपल्स वार, इसके सभी फार्मेशन और प्रमुख संगठन।
* माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर (एमसीसी) इसके सभी फार्मेशन और प्रमुख संगठन।
* अल बदर
* जमायत-उल-मुजाहिद्दीन
* अल-कायदा
* दुखतरान-ए-मिल्लत (डीईएम)
* तमिलनाडु लिबरेशन आर्मी (टीएनएलए)
* तमिल नेशनल रिट्रीवॅल टुप्स (टीएनआरटी)
* अखिल भारत नेपाली एकता समाज (एबीएनईएस)

चंद्रमा पर उपग्रह भेजना उचित है?

देश में चारों तरफ खुशहाली फैली है, लहलहाती फसलों से किसानों की चाँदी हो रही है, आतंकवाद का नामोनिशां नहीं है, देश की आर्थिक स्थिति दिन-ब-दिन मजबूत होती जा रही है...ऐसे हालातों के बीच अगर 386 करोड़ रुपए खर्च कर चंद्रमा पर चंद्रयान भेजा जाए तो बात समझ में आती है, लेकिन क्या हमारे देश के हालात ऐसे हैं? नहीं। फिर क्या ऐसे समय में चंद्रमा पर उपग्रह भेजना उचित है?

जरूरी है, मगर... : माना कि देश के विकास में अंतरिक्ष यान प्रक्षेपण का भी बड़ा हाथ होता है। इससे जाहिर होता है कि देश तकनीक के मामले में भी दूसरे देशों की बराबरी कर रहा है।

इसरो ने कल चंद्रयान-1 के दीदार देश को कराए। इसरो इस पर लंबे समय से काम कर रहा था और यह उसकी महती योजना का हिस्सा था। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जब पहली बार इस योजना का खुलासा किया था, तब विश्व बिरादरी को भरोसा नहीं था कि भारत ऐसा कर पाएगा, लेकिन आखिर हम उस मुकाम पर पहुँच ही गए, जहाँ से देश अपना पहला चंद्रयान भेजेगा।

पीएसएलवी (पोलर सैटेलाइट लॉन्च वीइकल) चंद्रयान को लेकर अंतरिक्ष की उड़ान भरेगा। इसकी तिथि तय नहीं की गई है, लेकिन 22 से 26 अक्टूबर के बीच इसे छोड़ा जाएगा।

आधुनिकता की मिसाल : चंद्रमा के बारे में जानकारियाँ जुटाने के लिए चंद्रयान में उच्च तकनीक वाले यंत्र मौजूद हैं। इसके प्रक्षेपण के उद्देश्यों के बारे में जानकारी देते हुए इसरो के सैटेलाइट केंद्र के निदेशक डॉ. टीके एलेक्स ने बताया कि यह चंद्रमा के बनने की प्रक्रिया के बारे अहम जानकारी भेजेगा।

इसके माध्यम से चंद्रमा की सतह पर प्रयोग भी किए जाएँगे। यह दो साल के दौरान चाँद की सतह का पूरा नक्शा भेजेगा।


परीक्षण अभी बाकी : बहरहाल, चंद्रयान को अभी-भी कुछ अहम परीक्षणों से गुजरना है। बेंगलुरु में यह जाँच की जाएगी। सफल रहने पर ही इसका प्रक्षेपण घोषित तिथि को हो सकेगा, वरना 5 महीने देरी से पूरी हुई यह योजना कुछ और समय ले सकती है।

इसरो के वैज्ञानिकों ने बताया है कि कम्पन और ध्वनि को लेकर चंद्रयान के अहम टेस्ट अभी बाकी हैं। स्पेसक्राफ्ट को पहले भारी कम्पन और फिर चार जेट विमानों के बराबर ध्वनि पर परखा जाएगा।

जीवन की संभावना तलाशेगा : इसरो के परियोजना प्रमुख डॉ. अन्ना दुराई ने बताया कि चंद्रयान चंद्रमा पर जीवन की संभावनाएँ भी तलाशेगा। हालाँकि तकनीकी परेशानियों के चलते यह चंद्रमा की सतह पर उतर नहीं सकेगा, लेकिन उसके आसपास मँडराएगा। इससे भी कई अहम जानकारी हासिल होगी।

चंद्रयान-2 को भी हरी झंडी : इधर, चंद्रयान-1 के बारे में जानकारी दी जा रही थी और उधर सरकार चंद्रयान-2 को हरी झंडी देने में लगी थी। कल कैबिनेट ने इस आशय का फैसला लिया। इस योजना पर 425 करोड़ रुपए का खर्च आएगा।

देश की सचाई : भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को देखकर लगता है कि यहाँ नागरिकों की मूलभूत जरूरतें पूरी चुकी हैं और देश आंतरिक तौर पर किसी बड़ी परेशानी से नहीं जूझ रहा है, लेकिन ऐसा नहीं है। देश पर कई विपदाएँ मँडरा रही हैं, जिनका हल पहले खोजा जाना चाहिए।

हाल ही में बिहार में अब तक की सबसे भीषण बाढ़ ने कहर बरपाया है। 20 लाख से अधिक लोग बेखर हो चुके हैं। 1000 करोड़ रुपए से अधिक की राशि भी कम लग रही है। इस प्राकृतिक आघात के निशान शायद बिहार के मानचित्र से मिट ही न पाएँ।

अब सौराष्ट्र जैसे दूसरे क्षेत्रों में बाढ़ का पानी भरता जा रहा है। बेबस किसानों को इसका सबसे अधिक खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। बताते हैं कि असम में बाढ़ का खतरा बना हुआ है।

आतंकवाद को सरकार रोक नहीं पा रही है। आतंकियों के हौसले इतने बुलंद हो चुके हैं कि वे पहले से घोषणा कर धमाके कर रहे हैं। हर बार सरकार का रवैया वही रहा है...जाँच की जाएगी, कुछ लोगों को गिरफ्तार किया जाएगा, मुकदमा चलेगा, लेकिन फैसला कुछ नहीं हो पाएगा। लाखों लोगों की जिंदगी आतंकवाद के चलते नर्क हो गई है।

प्राथमिकता क्या है?
सरकार भले ही ‘मिशन मून’ को लेकर अपनी पीठ थपथपाए, लेकिन सवाल उठाए जा रहे हैं कि उसकी प्राथमिकता क्या है...नागरिकों की परेशानियाँ दूर करना, भूखों को रोटी खिलाना, आतंकियों को रोकना या चाँद पर जीवन की तलाश करना? जहाँ जीवन है, उसकी परवाह नहीं की जा रही है।

Tuesday, September 9, 2008

शर्म हमें शायद अब भी नहीं आएगी

एक बार फिर हाजि़र हैं, नागेन्‍द्र अपनी पैनी निगाह और मामूली से अल्‍फाज के साथ, मामूली से लोगों की बेहाल जिंदगी बयान करने के लिए। ऐसी बेदर्दी, ऐसी है‍वानियत... उफ्फ... संकट की घड़ी में ऐसा सुलूक... सच है, शर्म वाकई में मगर हमें/इनको नहीं आएगी। इन्‍हें आप किन अल्‍फाज़ से नवाज़ेंगे। इनके लिए आप किस सजा की तजवीज करेंगे। ये शब्‍दों से ऊपर हैं और सजा तो शायद इनके लिए है ही नहीं। हिन्‍दुस्‍तान, भागलपुर के स्‍थानीय सम्‍पादक नागेन्‍द्र (Nagendra) की यह रिपोर्ट। हिन्‍दुस्‍तान से शुक्रिया के साथ।

शर्म हमें शायद अब भी नहीं आएगी
बाढ़ग्रस्त इलाकों की चिकित्सा व्यवस्था में छेद ही छेद हैं
सुपौल और सहरसा से लौटकर नागेन्‍द्र

बिहार के बाढ़ग्रस्त इलाकों में सरकारी चिकित्सा इंतजामों की बार-बार ढँकी जा रही परत खोलने के लिए त्रिवेणीगंज की यह घटना पर्याप्त है। पिछले पाँच दिनों में वहाँ जो कुछ हुआ उससे आक्रांत लोग अब रेफरल अस्पताल छोड़ कर भागने लगे हैं। लिखते हुए भी शर्म आती है लेकिन यह सच बहुत क्रूर है।

एक गर्भवती महिला वहाँ लाई गई। हालत बिगड़ी। उसका बच्च गर्भ में ही मर चुका था। आधा बाहर आ चुका था। कई दिन इसी हाल में पड़ा रहा। मचहा गाँव की इस महिला का हाल देख रेफरल अस्पताल के डाक्टरों ने इसे सहरसा जने की सलाह दी। वहाँ कोई भर्ती करने को तैयार नहीं हुआ। उसे फिर त्रिवेणीगंज ले गए जहाँ वह रविवार तक इसी हाल में पड़ी थी। बदबू भी आने लगी तो डाक्टरों ने अपना आउटडोर खुले मैदान में लगा लिया लेकिन उसकी ओर नहीं देखा। ‘हिन्दुस्तान’ में खबर छपी तो सब सक्रिय हुए। उसे फिर सुपौल भेजा गया। अभी शाम को (सोमवार) खबर आई है कि चिकित्सा तंत्र की संवेदनहीनता का शिकार हुई यह महिला फिर सहरसा पहुँचा दी गई थी जहाँ उसने दम तोड़ दिया है।

बाढ़ग्रस्त इलाकों में चिकित्सा सुविधाओं पर आश्वस्त होने वाले सरकारी तंत्र के लिए यह एक सूचना ही शायद काफी होगी अपनी पीठ थपथपाने की परिपाटी पर शर्म करने के लिए।

बिहार में बाढ़ की विभीषिका के बीच की गई चिकित्सा व्यवस्थाओं का जमीनी सच तो यही है लेकिन पता नहीं वह कौन सा नामालूम तंत्र और पद्धति है जिसके जरिए मानीटरिंग करने वाले सरकारी लोग भी वहाँ से संतुष्ट होकर लौट रहे हैं। केन्‍द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की उच्चस्तरीय टीम ने सहरसा के राहत शिविरों का निरीक्षण कर दवाओं की उपलब्धता और स्वच्छता पर संतोष व्यक्त किया है (यह खबर आज ही छपी है)। यह हतप्रभ करने वाला है।

दरअसल केन्‍द्रीय हो या राज्य की मानिटरिंग टीम, तरीका तो सब का सरकारी ही है। जिला मुख्यालय के सर्किट हाउसों में बैठकर या जीप से मुआयना करने से पूरा सच सामने नहीं आता। इसके लिए भीतर के उन स्थानों तक पहुँचने की जरूरत है जहां असल संकट है। रंगीन बत्ती लगी टाटा सफारी में बैठे एक बड़े अफसर जिस तरह सहरसा में शनिवार को मातहतों से रिपोर्ट ले रहे थे ‘व्यवस्थाओं पर संतुष्टि का यह सर्टिफिकेट’ शायद इसी पद्धति की देन है। उन्हें यह सच पता ही नहीं चल पाता (या शायद वे जनना नहीं चाहते) कि दूरदराज इलाकों से लोग अब भी अपने ही तरीके से, अपने संसाधनों से अपना इलाज कर रहे हैं।

सुपौल, सहरसा, मधेपुरा, अररिया टाउन ही नहीं टेढ़े-मेढ़े, टूट कर किसी तरह बने रास्तों का लंबा सफर तय कर काफी अंदर बसे नरपतगंज (अररिया), त्रिवेणीगंज (सुपौल), भंगहा (पूर्णिया-मधेपुरा सीमा पर) और सिंहेश्वर (मधेपुरा) में चिकित्सा व्यवस्था का ऐसा ही नजारा दिखाई देता है। बाढ़ की विभीषिका से अंदर तक टूट चुके इन इलाकों में राजनीतिक दलों या उनसे जुड़े संगठनों के राहत शिविरों की तो भरमार है और चटखदार भोजन खिलाने की होड़ भी लेकिन एक भी शिविर ऐसा नहीं जहाँ दवा और डाक्टर का समुचित इंतजाम हो। चिकित्सा देने वाले ऐसे शिविर या तो गैर सरकारी संगठन चला रहे हैं या फिर सेना और अर्धसैनिक बल। सरकारी मेडिकल शिविर हैं लेकिन इनकी रफ्तार वही बेढंगी। संख्या भी काफी कम है।

त्रिवेणीगंज प्रखंड के भुतहीपुल की मुरलीगंज ५४ संख्या नहर पर एक छोटा-मोटा कस्बा बसा दिखाई देता है। इसे सेना और सीआईएसएफ की नेशनल डिजास्टर रेस्पांस फोर्स (एनडीआरएफ) ने बसाया है। वे लोगों को अब भी दूर-दराज से बचाकर ला रहे हैं, उन्हें भोजन करा रहे हैं, सुरक्षित शिविरों तक पहुँचा रहे हैं। इसी नहर पर उनका मेडिकल कैम्प भी है। सारी सुविधाओं के साथ। सेना का डाक्टर मरीजों को देखता है और जवान उन्हें दवा देते हैं। आधा मर्ज तो इन जवानों के प्यार से ही खत्म हो जता है।

इसी कैम्प के साथ एक और भी शिविर है। वहाँ अचानक डाँट-डपट की आवाज आती है। बचाकर लाए गए लोग हैं जो कुछ कहना चाहते हैं। उन्हें डपट दिया जता है। हम समङा जते हैं कि यह कोई ‘छोटे कद’ का ‘बड़ा’ सरकारी अफसर है। पता चला यह बिहार सरकार का शिविर है जो लोगों को सहायता देने के लिए लगाया गया है। चिकित्सा सहायता देने वाले शिविर यूँ भी कम हैं, लेकिन ऐसे में ऐसा व्यवहार लोगों की पीड़ा बढ़ा देता है।

एनडीआरएफ के सूबेदार टी गंगना कहते हैं, ‘हम तो मरीज देखते हैं। दवा तो सरकार को देनी है। वह बहुत कम है। न्यूट्रीशन के लिए तो कुछ है ही नहीं। नवजात के लिए भी कुछ नहीं। प्रापर न्यूट्रीशन न मिला तो जच्चा-बच्चा कैसे जियेगा।’ गंगना सूनामी के बाद थाइलैण्ड में भी काम कर चुके हैं। कई और देशों में भी। बोले ‘ऐसी सरकारी उपेक्षा कहीं नहीं देखी। अपने देश में भी ऐसा खराब अनुभव कहीं नहीं हुआ।’

हाँ, यूनीसेफ के लोग जहाँ-तहाँ दवाइयाँ और टेंट बाँटते दिखाई दे जाते हैं। उनके टेंट ऐसे हैं जिनमें सुरक्षित प्रसव की भी व्यवस्था है। वे बड़ा काम, पूरी खामोशी से कर रहे हैं।

Saturday, August 30, 2008

बशीर बद्र की ग़ज़लें/नज़में

कभी यूँ भी आ मेरी आँख में के मेरी नज़र को ख़बर न हो
मुझे एक रात नवाज़ दे मगर उसके बाद सहर न हो

वो बड़ा रहीम-ओ-करीम है मुझे ये सिफ़त भी अता करे
तुझे भूलने की दुआ करूँ तो दुआ में मेरी असर न हो

मेरे बाज़ुओं में थकी थकी , अभी महव-ए-ख़्वाब है चाँदनी
न उठे सितारों की पालकी, अभी आहटों का गुज़र न हो

ये ग़ज़ल कि जैसे हिरन की आँखों में पिछली रात की चाँदनी
न बुझे ख़राबे की रोशनी, कभी बेचराग़ ये घर न हो

वो फ़िराक़ हो या विसाल हो, तेरी याद महकेगी एक दिन
वो गुलाब बनके खिलेगा क्या, जो चिराग़ बनके जला न हो

कभी धूप दे, कभी बदलियाँ, दिल-ओ-जाँ से दोनों क़ुबूल हैं
मगर उस नगर में न क़ैद कर जहाँ ज़िन्दगी की हवा न हो

कभी दिन की धूप में झूम के कभी शब के फूल को चूम के
यूँ ही साथ साथ चलें सदा कभी ख़त्म अपना सफ़र न हो

मेरे पास मेरे हबीब आ ज़रा और दिल के क़रीब आ
तुझे धड़कनों में बसा लूँ मैं के बिछड़ने का कभी डर न हो

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कहाँ आँसूओं की ये सौग़ात होगी
नये लोग होंगे नई बात होगी

मैं हर हाल में मुस्कुराता रहूँगा
तुम्हारी मुहब्बत अगर साथ होगी

चराग़ों को आँखों से महफ़ूस रखना
बड़ी दूर तक रात ही रात होगी

मुसाफ़िर हैं हम भी मुसाफ़िर हो तुम भी
किसी मोड़ पे फिर मुलाक़ात होगी

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कहीं चाँद राहों में खो गया कहीं चाँदनी भी भटक गई
मैं चराग़ वो भी बुझा हुआ मेरी रात कैसे चमक गई

मेरी दास्ताँ का उरूज था तेरी नर्म पलकों की छाँव में
मेरे साथ था तुझे जागना तेरी आँख कैसे झपक गई

कभी हम मिले तो भी क्या मिले वही दूरियाँ वही फ़ासले
न कभी हमारे क़दम बढ़े न कभी तुम्हारी झिझक गई

तुझे भूल जाने की कोशिशें कभी क़ामयाब न हो सकीं
तेरी याद शाख़-ए-गुलाब है जो हवा चली तो लचक गई

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कौन आया रास्ते में आईना ख़ाने हो गए
रात रौशन हो गैइ दिन भी सुहाने हो गए

क्यों हवेली के उजड़ने का मुझे अफ़सोस हो
सैकड़ों बेघर परिंदों के ठिकाने हो गए

ये भी मुम्किन है के उसने मुझको पहचाना न हो
अब उसे देखे हुए कितने ज़माने हो गए

जाओ उन कमरों के आईने उठाकर फेंक दो
वे अगर ये कह रहें हो हम पुराने हो गए

मेरी पलकों पर ये आँसू प्यार की तौहीन है
उनकी आँखों से गिरे मोती के दाने हो गए

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ख़ुदा हमको ऐसी ख़ुदाई न दे
कि अपने सिवा कुछ दिखाई न दे

ख़तावार समझेगी दुनिया तुझे
अब इतनी भी ज़्यादा सफ़ाई न दे

हँसो आज इतना कि इस शोर में
सदा सिसकियों की सुनाई न दे

अभी तो बदन में लहू है बहुत
कलम छीन ले रौशनाई न दे

मुझे अपनी चादर से यूँ ढाँप लो
ज़मीं आसमाँ कुछ दिखाई न दे

ग़ुलामी को बरकत समझने लगें
असीरों को ऐसी रिहाई न दे

मुझे ऐसी जन्नत नहीं चाहिये
जहां से मदीना दिखाई न दे

मैं अश्कों से नाम-ए-मुहम्मद लिखूँ
क़लम छीन ले रौशनी न दे

अभी तो बदन में लहू है बहुत
क़लम छीन ले रोशनाई न दे

ख़ुदा ऐसे इरफ़ान का नाम है
रहे सामने और दिखाई न दे

दोस्ती के मायने ...?

मांगनेसे तो खुदा भी मिल सकता है ,
तो ये रकीब क्या चीज़ है ?
तड़प हो गर पा लेने की ,
तो ये खुशियाँ भी क्या चीज़ है ??

दम भरते थे वो दोस्ती का हरदम ,
मायने भी क्या दोस्ती के क्या वो समज पाये है ?
खफा भी हुए है हम इसी बात पर ,
पर उफ़ ... शिकायत भी न कर पाये है ...

कारवाँ गुज़र गया

स्वप्न झरे फूल से,
मीत चुभे शूल से,
लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से,
और हम खड़ेखड़े बहार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे।

नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गई,
पाँव जब तलक उठे कि ज़िन्दगी फिसल गई,
पातपात झर गये कि शाख़शाख़ जल गई,
चाह तो निकल सकी न, पर उमर निकल गई,
गीत अश्क बन गए, छंद हो दफन गए,
साथ के सभी दिऐ धुआँधुआँ पहन गये,
और हम झुकेझुके, मोड़ पर रुकेरुके,
उम्र के चढ़ाव का उतार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे।

क्या शबाब था कि फूलफूल प्यार कर उठा,
क्या सुरूप था कि देख आइना सिहर उठा,
इस तरफ ज़मीन उठी तो आसमान उधर उठा,
थाम कर जिगर उठा कि जो मिला नज़र उठा,
एक दिन मगर यहाँ, ऐसी कुछ हवा चली,
लुट गयी कलीकली कि घुट गयी गलीगली,
और हम लुटेलुटे, वक्त से पिटेपिटे,
साँस की शराब का खुमार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे।

हाथ थे मिले कि जुल्फ चाँद की सँवार दूँ,
होठ थे खुले कि हर बहार को पुकार दूँ,
दर्द था दिया गया कि हर दुखी को प्यार दूँ,
और साँस यूँ कि स्वर्ग भूमी पर उतार दूँ,
हो सका न कुछ मगर, शाम बन गई सहर,
वह उठी लहर कि दह गये किले बिखरबिखर,
और हम डरेडरे, नीर नयन में भरे,
ओढ़कर कफ़न, पड़े मज़ार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे।

माँग भर चली कि एक,
जब नई नई किरन,
ढोलकें धुमुक उठीं,
ठुमक उठे चरनचरन,
शोर मच गया कि लो चली दुल्हन, चली दुल्हन,
गाँव सब उमड़ पड़ा, बहक उठे नयननयन,
पर तभी ज़हर भरी,
गाज एक वह गिरी,
पुँछ गया सिंदूर तारतार हुई चूनरी,
और हम अजानसे, दूर के मकान से,
पालकी लिये हुए कहार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे।

- गोपालदास नीरज

हां मैं बस ऐसा ही हूँ

बचपन के रंग बहुत गहरे है मन पर,
याद्दाश्त भी है कि खराब नहीं होती,
उमर के साथ भी, बस यही दुखाता है मन,
नही भुल पाता वह सीख,
आज के स्वार्थ भरे जमाने मे भी,
कि सुख सबमे बाटों,
और दुख दुसरो का भी लेकर,
अपने दुख के साथ मन मे छिपा लो ।

देखता आया हूं सामने मुस्कुराते चेहरे,
और हाथो में छिपे खंजर भी,
उन्हें भी लौटाया है मैंने फूल अपनी हंसी का,
नहीं हो पाता क्रूर उनसे भी,
जिन्होने चाहा कुचलना मेरा वजूद बार बार,
नही रख सकता मन में कुछ भी,
फिर भी है बहुत कुछ जिसको सहता हूँ,
जो भी मिलता है उससे हंस कर मिलता हूँ ।

यह सिद्धान्तो के बखान नहीं है,
न है गुणों के खजाने ।
ये आदतें है मेरी,
कि इनसे मजबूर हूँ मैं,
बस ऐसा ही हूँ,
हां मैं बस ऐसा ही हूँ ।

Wednesday, August 27, 2008

दिल के मरीज़ों को मिल सकती है राहत

वैज्ञानिक भ्रूण ऊतक के एक हिस्से से दिल की कोशिकाएँ बनाने के नज़दीक पहुँच गए हैं. इससे दिल के मरीज़ों का इलाज़ आसान हो सकता है. कनाडा, अमरीका और ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने भ्रूण से ली गईं स्टेम सेल से मानव हृदय की तीन तरह की कोशिकाओं को विकसित किया है. जब इन कोशिकाओं को एक बीमार चूहे में प्रत्यारोपित किया गया तो पाया गया कि उसके हृदय में उल्लेखनीय सुधार आया है. खोजाशोध के नतीज़ों को विज्ञान के मशहूर जर्नल “नेचर” में प्रकाशित किया गया है. शोधकर्ताओं ने इन कोशिकाओं को भ्रूण की कोशिकाओं से विकसित किया. स्टेम सेल में सही समय पर सही वृद्धि कारकों की आपूर्ति कर वैज्ञानिकों ने तीन अलग-अलग तरह की अपिरपक्कव हृदय कोशिकाओं के निर्माण को प्रोत्साहित किया. वैज्ञानिकों ने कार्डियोमायोसाइट्स, इंडोथीलियाल कोशिका और खून प्रवाहित करने वाली कोशिकाओं को स्टेम सेल से विकसित किया. ये तीनों कोशिकाएँ मानव हृदय के अहम घटक हैं.कनाडा के टोरंटो शहर स्थित मैक इवन सेंटर फॉर रिजनरेटिव मेडिसीन के डॉक्टर गॉर्डेन केलर ने बताया कि इन कोशिकाओं के निर्माण का मतलब यह हुआ कि हम दक्षता के साथ विभिन्न तरह के हृदय कोशिकाओं का निर्माण कर सकते हैं. इनका हम प्राथमिक और चिकित्सकीय शोध में उपयोग कर सकते हैं. हृदय की होगी मरम्मतइस महत्वपूर्ण शोध का लाभ यह होगा कि ये कोशिकाएं कैसे विकसित होती हैं, कैसे काम करती हैं और विभिन्न तरह की दवाओं के साथ कैसे प्रतिक्रिया करती हैं, यह जानने के लिए इन कोशिकाओं की अधिकाधिक आपूर्ति कर सकते हैं. भविष्य में कोशिकाएं हार्ट अटैक जैसी स्थिति में क्षतिग्रस्त हृदय कोशिकाओं की मरम्मत करने में काफ़ी मददगार साबित होंगी.ब्रिटिश हार्ट फ़ाउंडेशन के संयुक्त निदेशक जर्मी पियर्सन ने कहा कि यह शोध इस बात का स्पष्ट संकेत है कि हम उस दिन के करीब पहुंच रहे जब किसी मरीज़ के हृदय की क्षितग्रस्त कोशिकाओं की मरम्मत में स्टेम सेल का सफलतापूर्वक प्रयोग किया जाएगा.

Monday, August 25, 2008

एहसास

उम्मीदों को दम घुटते देखा है मैंनें
सपनों को टूटते देखा है मैंनें
आशाओं की पलकों पर
ओस सी मखमली
पल में ढुलक पड़ती
कपोलों के धरातल पर अपना अधिकार समझ
ये जान कि व्यर्थ हो जाएगी ये बूंद
अपने में समेटे एहसास को
ये बूंद हो सकती है निर्जीव
लेकिन एहसास नहीं
वो तो फिर जागेंगे
छूने को नया आकाश
फिर उमड़ेंगे
शायद फिर बरसने को
या फिर हवा के तेज़ बहाव के साथ आगे बढ जाने को
तलाशने नया धरातल
नयी उम्मीद, नयी आशा, नये एहसास के साथ................

" आज फिर"

आज फिर ये दो अखीयाँ भर आयी है
आज फिर तेरी याद चली आयी है .
दिल ने कहा ताजा कर लें वो सारे गम
आज फिर हमने जख्मों की किताब उठाई है.
लबों ने चाहा कर लें खामोशी से बातें हम
आज फिर हमने अपनी तबीयत बेहलाई है.
नज़र मचल गई है एक दीदार को तेरेआज
फिर तेरी तस्वीर नज़र आयी है.
रहा नही वायदों और वफाओं का वजूद कोई,
आज फिर हर एक चोट उभर आयी है.
आज फिर ये दो अखीयाँ भर आयी है,
आज फिर तेरी याद चली आयी है .
आज फिर हमने चाहा करें टूट कर प्यार तुम्हे ,
आज फिर दिल म वही आग सुलग आयी है.
आज फिर ये दो अखीयाँ भर आयी है,
आज फिर तेरी याद चली आयी है .
जरूरत क्या है
ख़ुद को मेरा दोस्त बनाने की जरूरत क्या है,
दोस्त बनके दगा देने की जरूरत क्या है,
अगर कहा होता तो हम ख़ुद ही चले जाते,
यू आपको चेहरा छुपाने की जरूरत क्या है,
सोचा था रहेंगे एक घर बनाके बड़े सुकून से,
न मिल सका सुकून तो महलों की जरूरत क्या है,
है कौन मेरा जो बहाता मेरी मंजार पर अश्क,
मुस्कुराते रहना तुम ,मुझे तेरे अश्को की जरूरत क्या है,
मैं तो जान भी दे सकती थी तुझपे ऐ दोस्त,
पर इस तरह मुझे आजमाने की जरुरत क्या है,
दबी हूँ मिटटी में इस कदर की बड़ा दर्द है,
मुझ पर फूल डाल कर और दबाने की जरुरत क्या है,
मुझ से कर के दोस्ती अगर पूरा हो गया हो शौक,
तो किसी
पतझर में सीलन...
पतझर में जो पत्ते बिछड़ जाते हैं अपने आशियाने से
वे पत्ते जाने कहाँ चले जाते हैं?
उन सूखे पत्तों की रूहें उसी आशियाने की दीवारों पे
सीलन की तरह बहती रहती है!
किसी भी मौसम में ये दीवारें सूखती नही!
ये नम बनी रहती
हैमौसम रिश्तों की रूहों को सूखा नही सकते....

Wednesday, July 30, 2008

आईना टूट गया

आईना सामने आया तो आईना टूट गया,
जिसने हमको बर्बाद किया उसी ने हमको लुट लिया।
रोते है जब याद उनकी हमें आती है।
आईना देखता हूं तो सूरते नजर उनकी हमें आती है।
भूले से कभी हमको नींद आ जाती है
खवाबो में नजर बरात उनकी हमें आती है।।
आईना सामने आया तो आईना टूट गया,
जिसने हमको बर्बाद किया उसी ने हमको लुट लिया।।
वफ़ा के नाम पर एक गुनाह उन्होंने ये भी किया,
सारी खुशियों को दामन में अपनी समेट लिया।
दे दिए गम ज़माने भर के उसने,
अपने साजन को गलिये में भटकने की लिए छोड़ दिया।।
आईना सामने आया तो आईना टूट गया,
जिसने हमको बर्बाद किया उसी ने हमको लुट लिया।
साभार योगेश गौतम
जिन्होंने हमको बर्बाद किया उसी ने हमको लूट लिया।
भूल हो गई क्या हमसे ये बता तो जरा,
यू ही हमें तद्पाने में हुम्हे तो आया मजा।
यारो तुम न करना कभी मोहब्बत।
इसमे रुसवाई है और अरमानो की जलती है चिता।
आईना सामने आया तो आईना टूट गया,
जिसने हमको बर्बाद किया उसी ने हमको लुट लिया।।
साभार योगेश गौतम

अमोनियम नाइट्रेट फिर बना आतंक का कारक

बेंगलुरु व अहमदाबाद में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों के बाद सूरत में लगातार कइ बम मिलने से पूरे देश में आतंक व दहशत का माहौल है एक बार फिर इन विस्फोटों में अमोनियम नाइट्रेट का प्रयोग किए जाने की बात सामने आइ है दूसरे शब्दों में कहें तो मुख्यतया खेती में इस्तेमाल किया जाने वाला अमोनियम नाइट्रेट इन दिनों आतंक का कारक बन चुका है जानकारों के अनुसार जो बम इन विस्फोटों में इस्तेमाल किए गए उसका वजन छह किलो का था और उसे बनाने में अमोनियम नाइट्रेट के साथ इंजिन आयल जिलेटिन की छडें कंक्रीट शारपनेल कंकड नट बोल्ट का प्रयोग किया गया था इसके बाद इसे एक चिप के सहारे जोडा गया था जो टाइमर डिवाइस की तरह काम करता है जब अमोनियम नाइट्रेट को इंधन के साथ मिलाया जाता है तो यह ताकतवर विस्फोटक के रुप में बदल जाता है यह काफी कम समय में गैस पैदा करता है और जैसे ही यह गैस फैलता है तो विस्फोट होता है अमोनियम नाइट्रेट आसानी से बाजारों में उपलब्ध है और इसे लाने ले जाने पर कोइ पाबंदी नहीं है इसलिए इन दिनों इसका प्रयोग आसान हो गया है

परमाणु डील की राह में बाधा पैदा कर सकता है पाकिस्तान

भारत के अमेरिका के साथ परमाणु करार के सौदे की राह में बाधा डालने वाले देशों में सबसे ऊपर नाम आ रहा है पाकिस्तान का पाक सरकार के उच्च पदस्थ सूत्रों के हवाले से यह जानकारी सामने आइ है शुक्रवार यानि एक अगस्त को जब अंतरराष्ट्रीय परमाणु एजेंसी आइएइए में जब परमाणु करार पर विचार के लिए निदेशक मंडल व सदस्य देशों की बैठक होगी तब पाकिस्तान बाधा पैदा कर सकता है हालांकि अमेरिकी राष्ट्रपति बुश ने पाकिस्तान पर दवाब बना रखा है कि वह समरथन दे मगर पाकिस्तान ने अब तक वोट पर अपना रुख साफ नहीं किया है पाकिस्तान संस्था के ३५ सदस्यों में से एक है और उसने पिछले दिनों यह लिखकर दिया है कि सेफगारड एग्रीमेंट का ड्राफ्ट असंसेधानिक है और इसे तुरंत बदला जाए इससे पहले पाकिस्तानी प्रधानमंत्री गिलानी ने भी वाशिंगटन से मांग की थी कि अमेरिका उसके साथ भारत जैसा ही करार करे और इसके लिए उसने अपने यहां के खान जैसे मामले की गलती को दोहराने से मना करने का वायदा भी किया था

Wednesday, May 7, 2008

अक्षय तृतीया
पिछले वर्ष अक्षय तृतीया के दौरान 90 टन सोने की बिक्री हुई थी. अक्षय तृ्तीया के दिन आप अपना व्यवसाय की शुरूआत भी कर सकते हैं. किसी मकान के बनाने के लिये नींव की खुदाई के लिये भी यह शुभदिन माना जाता है. चूंकि इस दिन विवाहों के लिये किसी मुहूर्त की आवश्यकता नहीं होती इसलिये इस दिन राजस्थान में भारी संख्या मे बाल विवाह करने की कु-रीति भी फैली हुई है.
अक्षय तृतीया (Akshaya Tritiya) को सामन्यतया अखतीज के नाम से भी पुकारा जाता है. अक्षय का अर्थ है जो कभी भी खत्म नहीं होता. हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार यह दिन सौभाग्य और सफलता की सूचक है. इस दिन को सर्वसिद्धि मुहूर्त दिन भी कहये है क्योंकि इस दिन शुभकाम के लिये पंचांग देखने की जरूरत नहीं होती. यदि आप कुछ अचल सम्पत्ति, सोना, चांदी या दीर्घावधि के लिये कुछ खरीद करने जा रहे हैं तो यह दिन इस तरह की खरीददारी के लिये सर्वाधिक उपयुक्त है. हीरा या गहने भी इस शुभदिन पर खरीदे जा सकते हैं. इस दिन सोना की बहुत अधिक मात्र में खरीदा जाता है. पिछले वर्ष अक्षय तृतीया के दौरान 90 टन सोने की बिक्री हुई थी. अक्षय तृ्तीया के दिन आप अपना व्यवसाय की शुरूआत भी कर सकते हैं. किसी मकान के बनाने के लिये नींव की खुदाई के लिये भी यह शुभदिन माना जाता है. चूंकि इस दिन विवाहों के लिये किसी मुहूर्त की आवश्यकता नहीं होती इसलिये इस दिन राजस्थान में भारी संख्या मे बाल विवाह करने की कु-रीति भी फैली हुई है.
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार त्रेता युग की शुरुआत इसी दिन से हुई है और अमृत जल वाली पवित्र नदी गंगा भी इसी दिन धरती पर आई है.
अक्षय तृ्तीया विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम का जन्मदिन के रूप में मनायी जाती है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य और चन्द्रमा इस दिन उच्चस्थ स्थिति में होते हैं.
इस दिन उपवास रखते हैं और जौ, सत्तू, अन्न तथा चावल से भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. इस दिन सुबह ब्रम्ह मुहूर्त में उठकर गंगा या किसी नदी अथवा समुद्र में स्नान करें. विष्णु की मूर्ति को स्नान कराकर तुलसी पत्र चढ़ायें. इस दिन को नवन्न पर्व भी कहते हैं. इस दिन बरतन, पात्र, मिष्ठान्न, तरबूजा, खरबूजा दूध दही चावल का दान दें.
इस वर्ष 7 एवं 8 मई को अक्षय तृतीया है.

थम गए हाथ, लेकिन सुनाई देती रहेगी थाप

कदम बचपन में जब सामान्यत: बच्चे झुनझुने की आवाज सुनते हैं, पं. किशन महाराज के कानों में तबले की थाप सुनाई पड़ती थी। बचपन से लेकर कोई 85 बरस की उम्र तक जब उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कहा, तबला उनके साथ रहा। आज जब वे नहीं हैं, बार-बार उनके हाथों से तबले पर पड़ती थाप कायनात में रह-रहकर गूंजती सुनाई दे रही है और शायद तब तक गूंजती रहेगी जब तक कि तबला और संगीत के प्रेमी इस दुनिया में रहेंगे।
पं. किशन महाराज का जाना एक पूरे युग के अंत जैसा है। हालांकि यह बात हर बड़े आदमी के जाने पर कही, लिखी जाती है लेकिन पं. किशन महाराज के बारे में, खासकर तबले को लेकर यह जितनी ईमानदार उक्ति है, उतनी शायद दूसरों के संदर्भ में नहीं है। वजह बहुत साफ है। वह यह कि पं. किशन महाराज का जन्म न केवल तबले के वातावरण में हुआ, बल्कि संस्कारों में भी तबले की ताल हरपल, हरकदम साथ चली। १९२३ की श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को बनारस के कबीर चौरा में जन्मे पं. किशन महाराज का जन्म एक संयोग ही था कि वे नृत्य और संगीत के देवता श्रीकृष्ण के जन्मदिन के दिन इस धरती पर आए।
पिता हरि महाराज और ताऊ विख्यात तबला वादक पं. कंठे महाराज ने उन्हें प्रारंभिक शिक्षा दी। कंठे महाराज तो उनकी प्रतिभा से इतने मोहित थे कि उन्होंने किशन महाराज को गोद ही रख लिया। बस फिर क्या था। बीच में तबले की ताल थी और महागुरु के सान्निध्य में भविष्य का महान तबलावादक गढ़ा जा रहा था। बनारस की भूमि, गंगा की तरंगों और सदगुरुओं के सान्निध्य का ही प्रताप था कि देखते ही देखते पं. किशन महाराज ने तबले पर अधिकार कर लिया। इसके बाद उनके तबले ने संगीत के क्षेत्र में कला और प्रतिभा के जो इंद्रधनुष बिखेरे, उसकी रंगत वे ही जानते हैं जिन्होंने उन्हें बजाते हुए देखा और सुना है। अपने पूर्ववर्तियों और समकालीनों से उनका तबला इस मायने में अलग और बेजोड़ रहा कि आमतौर पर वादक स्त्रीप्रधान तबला बजाते थे, पं. किशन महाराज ने बनारस घराने का प्रवर्तन कर अपने व्यक्तित्व के अनुरुप पुरुषप्रधान तबले को स्थापित किया। लयकारी और तिहाई के तो वे मानो जादूगर ही थे।
उनका तबला शुरू करना और समापन करना किसी सूर्योदय और सूर्यास्त से कमतर नहीं रहा। यही वजह थी कि उनके बाद जितने भी तबलावादक हुए, ज्यादातर ने उनके ढंग को अपनाया और दुनिया में तबले का नाम स्थापित किया। किशन महाराज का विराट व्यक्तित्व ही था कि उन्होंने दूसरे नंबर के वाद्य माने जाने वाले तबले को मुख्य वाद्य के रूप में इस तरह स्थापित किया कि कलाकारों के एकल तबला वादन संगीत सभाओं में न सिर्फ स्वीकारे गए बल्कि आगे चलकर प्राय: अनिवार्य जैसे हो गए। अपने १क्क्क् से ज्यादा शिष्यों और देश-विदेश में दिए दर्जनों एकल तबला वादन कार्यक्रमों के मार्फत पं. किशन महाराज ने सिर्फ अपने बूते तबले को मान और धन दोनों दिलाने में वह कामयाबी हासिल की, जो शहनाई के मामले में उस्ताद बिस्मिल्ला खां ने पाई थी। तबले के प्रति उनके अगाध प्रेम और निष्ठा का इससे बड़ा प्रमाण आज की दुनिया में क्या होगा कि उन्होंने 65-70 साल तक अपने घर कई शिष्यों को अपने खर्चे पर रखा और उन्हें तबले के गुर सिखाए। इसीलिए गुरुओं की पंक्ति में किशन महाराज को अपने शिष्यों से जीते-जी जो मान मिला, वह सामान्यत: अन्य कलाकारों को नहीं मिल पाया। पं. किशन महाराज न सिर्फ तबले के जादूगर थे बल्कि महान कवि, चित्रकार, मूर्तिकार, पहलवान, शिकारी, इक्का चलाने के मास्टर और न जाने कितनी विधाओं में दखल रखने वाले हुए।
कहते हैं बनारस का साहित्य समाज उन्हें अपनी बिरादरी में मानता था, तो संगीतकार सिर्फ अपना मानते थे। उनकी मशहूर कविता ‘सत्य है तो सत्य है, राम नाम सत्य है’ सुनकर संत मोरारी बापू ने उठकर उन्हें गले लगा लिया था। तबले में ओज और तेज के प्रवर्तक पं. किशन महाराज का उस्ताद जाकिर हुसैन इतना मान करते रहे कि वे कभी उनके बराबर के आसन पर नहीं बैठे। 6 फीट का कद, गोरा रंग, तबले सी प्रशस्त और तालभरी आंखें उनके व्यक्तित्व को ग्रीक देवताओं की भांति प्रकट करती रहीं। सच तो यह है कि बगैर स्कूली शिक्षा के तबले के माध्यम से पूरी दुनिया में भारत का नाम गौरवान्वित करने वाले इस ऋषि ने जीवनभर संगीत को सिर्फ दिया ही दिया, लिया शायद कुछ नहीं। यहां तक कि इसी साल 3 मार्च को वे एक कार्यक्रम में तबला बजाने गए थे और वहां बेहोशी के बाद फिर कदाचित उन्होंने तबले का स्पर्श नहीं किया। यानी देहांत के कोई दो महीने पहले तक तबला उनके साथ था। आज भले किशन महाराज नहीं हैं, लेकिन जब भी तबले की बात चलेगी, उनके नाम के बगैर पूरी न हो सकेगी। कबीर का मशहूर दोहा है -
हरिरस पीया जाणिए, कबहूं न जाए खुमार, मेंमता घूमत रहत, नाही तन की सार।
बस कुछ ऐसा ही रहा है पं. किशन महाराज और तबले का साथ, उन्होंने ऐसा रस पिया जिसका खुमार कभी न लौटे।

डॉ. विवेक चौरसिया

लंबी टांगें, मतलब अच्छी याददाश्त
वॉशिंगटन : लंबी टांगों वाली महिलाओं को खुश होने की एक और वजह मिल गई है, उन्हें अल्टशाइमर्ज होने की आशंका कम होती है। जॉन हॉपकिंग यूनिवर्सिटी, बाल्टीमोर के रिसर्चर्स के मुताबिक महिलाओं में टांगों की लंबाई के हर एक्स्ट्रा इंच के साथ इस रोग की आशंका में 16 फीसदी की कमी आती है। अल्टशाइमर्ज एक असाध्य रोग है जिसमें याददाश्त खोने के साथ-साथ दूसरी मानसिक बीमारियों के लक्षण उभरने लगते हैं। इस समय दुनिया भर में करीब दो करोड़ 40 लाख लोग इस रोग के शिकार हैं। इस रोग की शुरुआत में मामूली भूलने की आदतें सामने आती है। आमतौर पर इसे बढ़ती उम्र या तनाव का नतीजा समझा जाता है। बाद में भ्रम, गुस्सा, मूड में उतार-चढ़ाव, बोलने में दिक्कत और बड़े स्तर पर भूलने के लक्षण सामने आते हैं। अमेरिकी रिसर्चर्स ने 2,798 पुरुषों और महिलाओं को अपनी स्टडी में शामिल किया था। इसके नतीजों में सामने आया कि लंबी बांहों वाली महिलाओं की तुलना में छोटी बांहों वाली महिलाओं को अल्टशाइमर्ज होने की आशंका 50 फीसदी बढ़ जाती है। न्यूरॉलजी जर्नल में छपी इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पुरुषों में केवल टांगों की लंबाई ही मायने रखती है। उनकी टांगों की हर एक एक्स्ट्रा इंच की लंबाई पर अल्टशाइमर्ज की आशंका में छह फीसदी की कमी आती है। रिसर्चर्स का मानना है कि छोटे हाथ-पैरों का संबंध बचपन में पोषण के अभाव से होता है। गौरतलब है कि पोषण का दिमाग के विकास में अहम रोल होता है। टीम लीडर टीना हुआंग का कहना है 'शरीर के अंगों की लंबाई को बचपन में मिलने वाले पोषण का संकेतक खास माना जाता है।'
तुम मुझको पहचान न पाए
मैं राधा हूं, मैं सीता हूं, तुम मुझको पहचान न पाए,
मैं मुक्ता हूं, मैं मीरा हूं, तुम मुझको पहचान न पाए.
मैं झांसी हूं, मैं शक्ति हूं, तुम मुझको पहचान न पाए,
मैं देवी हूं, मैं भक्ति हूं, तुम मुझको पहचान न पाए.
मैं माता हूं, मैं बीवी हूं, तुम मुझको पहचान न पाए,
मैं बहना हूं, मैं बेटी हूं, तुम मुझको पहचान न पाए.
मेरी कोख से, तुम जनमे हो, तुम मुझको पहचान न पाए,
मेरे प्यार से, तुम महके हो, तुम मुझको पहचान न पाए.
मैं सुंदरता, की सूरत हूं, तुम मुझको पहचान न पाए,
मैं ममता की, इक मूरत हूं, तुम मुझको पहचान न पाए.
मैं चाहूं तो, तुझे बना दूं, तुम मुझको पहचान न पाए,
मैं चाहूं तो, तुझे मिटा दूं, तुम मुझको पहचान न पाए.
मैं चाहूं तो, घर सुंदर है, तुम मुझको पहचान न पाए,
मैं चाहूं तो, घर मंदिर है, तुम मुझको पहचान न पाए.
मुझसे ही ये, जग उन्नत है, तुम मुझको पहचान न पाए,
मुझसे ही ये, जग जन्नत है, तुम मुझको पहचान न पाए.
मैं रहमत हूं, मैं उल्फत हूं, तुम मुझको पहचान न पाए,
मैं कुदरत की, इक नेहमत हूं, तुम मुझको पहचान न पाए.
मुझको रिशियों, ने पूजा है, तुम मुझको पहचान न पाए,
मुझको मुनियों, ने पूजा है, तुम मुझको पहचान न पाए.
मैं ही प्रभुका, आधा अंग हूं, तुम मुझको पहचान न पाए,
मैं तो प्रभुके, सदा संग हूं, तुम मुझको पहचान न पाए.
अशोक कुमार वशिष्ठ

Saturday, April 5, 2008

सच कहूँ तो आँखें नम हैं!

खिड़की, दरवाजों पर पड़े
इसकी यादों के जाले
संग लिए,
गलियारे में आते-जाते
दिन के उजाले का
रंग लिए,
टैरेस के पीपल-नीचे
जगे सपनों के निराले
ढंग लिए,
कई सौ साँसों में सालों
इसने जो पाले वो
उमंग, लिए,
चल दिया दूर-
मैं बदस्तूर !
क्या कहूँ मैं?
अब इस दिल ने
संजोए कई सारे हीं गम हैं!
सच कहूँ तो आँखें नम हैं !!

सच कहूँ तो आँखें नम हैं!

बेलाग दिया जो हमको
हँसी-खुशी के कई उन
खातों को,
फूलों की बू-सी कोमल
दरो-दीवार की रूनझून
बातों को,
सब्ज-लाँन कभी धूल
और यारों की गुमसुम
रातों को,
बेबात युद्ध फिर संधि,
ऐसे अनगढे खून के
नातों को,
कर याद रोऊँ,
इन्हें कहाँ खोऊँ?
क्या कहूँ मैं?
रेशम-से वो पल हीं
नई राह में मेरे हमदम है!
सच कहूँ तो आँखें नम हैं!!!

पत्थर का जहां

पत्थर का खुदा,पत्थर का जहां,पत्थर का सनम भी देख लिया,
लो आज तुम्हारी महफिल में तेरा यह सितम भी देख लिया ।

तुम लाख हीं मुझसे कहती रहो,यह इश्क नहीं ऎसे होता,
जीता कोई कैसे मर-मर के,मैने यह भरम भी देख लिया।

इस बार जो मेरी बातों को बचपन का कोई मज़ाक कहा,
है शुक्र कि मैने आज के आज तेरा यह अहम भी देख लिया।

कहते हैं खुदा कुछ सोचकर हीं यह जहां हवाले करता है,
यह ज़फा हीं उसकी सोच थी तो मैने ये जनम भी देख लिया।

Wednesday, January 30, 2008

धरती के पास से गुज़रेगा एस्टेरॉयड

एक बड़ा एस्टेरॉयड पृथ्वी के पास से गुज़रने वाला है.पिछले 20 वर्षों में ये धरती के सबसे नज़दीक से गुज़रने वाला एस्टेरॉयड है. इसे 2007 टीयू 24 नाम दिया गया है. भारतीय समयानुसार बुधवार सुबह दो बजे के आस-पास ये धरती के सबसे करीब होगा.
इस 600 मीटर लंबे एस्टेरॉयड या ग्रहिका को ऐसे टेलिस्कोप के ज़रिए देखा जा सकता है जो तीन इंच या उससे बड़े हैं.
अगर आसमान साफ़ रहा तो इसे देखना मुमकिन होगा वरना 20 साल का इंतज़ार करना होगा.
ये एस्टेरॉयड 538000 किलोमीटर की दूरी पर से गुज़रेगा.
कुछ जगह ये कहा जा रहा है कि ये एस्टेरॉयड पृथ्वी के लिए ख़तरा बन सकता है.
लेकिन अमरीकी अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र नासा के डॉनल्ड योमैन्स इसे सरासर ग़लत बताते हैं. उन्होंने स्पष्ट किया कि ये एस्टेरॉयड दुनिया के लिए ख़तरा नहीं हैं.
खगोलशास्त्री ये जानने के इच्छुक हैं कि इस एस्टेरॉयड का कोई ठोस आकार है या फिर ये अंतरिक्ष में मल्बे जैसा कुछ है.
अगर इसके आकार का पता चल गया तो फिर उससे वैज्ञानिकों को एस्टेरॉयड को जानने समझने में मदद मिलेगी.
वैसे इसके पृथ्वी से टकराने के आसार नहीं है. लेकिन अगर ये पृथ्वी से टकराता है तो इसके परिणाम बहुत ही घातक होते हैं. कहा जाता है कि पृथ्वी से डायनासॉर के लुप्त होने में इसी की भूमिका थी.
करीब डेढ़ साल पहले, 2004 एक्सपी 14 नाम का एस्टेरॉयड धरती के पास से गुज़रा था.
किसी भी एस्टेरॉयड के नाम में वो वर्ष शामिल रहता है जब पहली बार उसके बारे में पता चला था.

एक शराबी की सूक्तियां

और इतने दिन बाद एक बार फिर कुछ लिखने की सूझीं और चल पड़ा लिखने
कृष्ण कल्पित, जो कि हिंदी में खूब पढे जाने वाले कवि हैं, इन दिनों अपने एक काम से खासी सुर्खियों में हैं.वह काम है उनकी नइ रचना एक शराबी की सूक्तियां जिसे पूरा का पूरा यहां पेश कर रहा हूंएक
शराबी के लिएहर रातआखिरी रात होती है.
शराबी की सुबहहर रोजएक नयी सुबह.
दो
हर शराबी कहता हैदूसरे शराबी सेकम पिया करो.
शराबी शराबी केगले मिलकर रोता है.शराबी शराबी केगले मिलकर हंसता है.
तीन
शराबी कहता हैबात सुनोऐसी बातफिर कहीं नहीं सुनोगे.
चार
शराब होगी जहांवहां आसपास ही होगाचना चबैना.
पांच
शराबी कवि ने कहाइस बार पुरस्कृत होगावह कविजो शराब नहीं पीता.
छह
समकालीन कवियों मेंसबसे अच्छा शराबी कौन है?समकालीन शराबियों मेंसबसे अच्छा कवि कौन है?
सात
भिखारी को भीख मिल ही जाती हैशराबी को शराब.
आठ
मैं तुमसे प्यार करता हूं
शराबी कहता हैरास्ते में हर मिलने वाले से.
नौ
शराबी कहता हैमैं शराबी नहीं हूं
शराबी कहता हैमुझसे बेहतर कौन गा सकता है?
दस
शराबी की बात का विश्वास मत करना.शराबी की बात का विश्वास करना.
शराबी से बुरा कौन है?शराबी से अच्छा कौन है?
ग्यारह
शराबीअपनी प्रिय किताब के पीछेछिपाता है शराब.
बारह
एक शराबी पहचान लेता हैदूसरे शराबी को
जैसे एक भिखारी दूसरे को.
तेरह
थोडा सा पानीथोडा सा पानी
सारे संसार के शराबियों के बीचयह गाना प्रचलित है.
चौदह
स्त्रियां शराबी नहीं हो सकतींशराबी को हीहोना पडता है स्त्री.
पंद्रह
सिर्फ शराब पीने सेकोई शराबी नहीं हो जाता.
सोलह
कौन सी शराबशराबी कभी नहीं पूछता
सत्रह
आजकल मिलते हैंसजे-धजे शराबी
कम दिखाई पडते हैं सच्चे शराबी.
अठारह
शराबी से कुछ कहना बेकार.शराबी को कुछ समझाना बेकार.
उन्नीस
सभी सरहदों से परेधर्म, मजहब, रंग, भेद और भाषाओं के पारशराबी एक विश्व नागरिक है.
बीस
कभी सुना हैकिसी शराबी को अगवा किया गया?
कभी सुना हैकिसी शराबी को छुडवाया गया फिरौती देकर?
इक्कीस
सबने लिक्खा - वली दक्कनीसबने लिक्खे - मृतकों के बयानकिसी ने नहीं लिखावहां पर थी शराब पीने पर पाबंदीशराबियों से वहांअपराधियों का सा सलूक किया जाता था.
बाईस
शराबी के पासनहीं पायी जाती शराबहत्यारे के पास जैसेनहीं पाया जाता हथियार.
तेईस
शराबी पैदाइशी होता हैउसे बनाया नहीं जा सकता.
चौबीस
एक महफिल मेंकभी नहीं होतेदो शराबी.
पच्चीस
शराबी नहीं पूछता किसी सेरास्ता शराबघर का.
छब्बीस
महाकवि की तरहमहाशराबी कुछ नहीं होता.
सत्ताईस
पुरस्कृत शराबियों के पासबचे हैं सिर्फ पीतल के तमगेउपेक्षित शराबियों के पासअभी भी बची हैथोडी सी शराब.
अट्ठाईस
दिल्ली के शराबी कोकौतुक से देखता हैपूरब का शराबी
पूरब के शराबी कोकुछ नहीं समझताधुर पूरब का शराबी.
उनतीस
शराबी से नहीं लिया जा सकताबच्चों को डराने का काम.
तीस
कविता का भी बन चला है अबछोटा मोटा बाजार
सिर्फ शराब पीना ही बचा है अबस्वांतः सुखय कर्म.
इकतीस
बाजार कुछ नही बिगाड पायाशराबियों का
हलांकि कई बार पेश किये गयेप्लास्टिक के शराबी.
बत्तीस
आजकल कवि भी होने लगे हैं सफल
आज तक नहीं सुना गयाकभी हुआ है कोई सफल शराबी.
तैंतीस
कवियों की छोडिएकुत्ते भी जहां पा जाते हैं पदककभी नहीं सुना गयाकिसि शराबी को पुरस्कृत किया गया.
चौंतीस
पटना का शराबी कहना ठीक नहीं
कंकडबाग के शराबी सेकितना अलग और अलबेला हैइनकमटैक्स गोलंबर का शराबी.
पैंतीस
कभी प्रकाश में नहीं आता शराबी
अंधेरे में धीरे धीरेविलीन हो जाता है.
छत्तीस
शराबी के बच्चेअक्सर शराब नहीं पीते.
सैंतीस
स्त्रियां सुलाती हैंडगमगाते शराबियों को
स्त्रियों ने बचा रखी हैशराबियों की कौम
अडतीस
स्त्रियों के आंसुओं से जो बनती हैउस शराब काकोई जवाब नहीं.
उनचालीस
कभी नहीं देखा गयाकिसी शराबी कोभूख से मरते हुए.
चालीस
यात्राएं टालता रहता है शराबी
पता नही वहां परकैसी शराब मिलेकैसे शराबी!
इकतालीस
धर्म अगर अफीम हैतो विधर्म है शराब
बयालीस
समरसता कहां होगीशराबघर के अलावा?
शराबी के अलावाकौन होगा सच्चा धर्मनिरपेक्ष
तैंतालीस
शराब ने मिटा दियेराजशाही, रजवाडे और सामंत
शराब चाहती है दुनिया मेंसच्चा लोकतंत्र
चवालीस
कुछ जी रहे हैं पीकरकुछ बगैर पिये.
कुछ मर गये पीकरकुछ बगैर पिये.
पैंतालीस
नहीं पीने में जो मजा हैवह पीने में नहींयह जाना हमने पीकर.
छियालीस
इंतजार में हीपी गये चार प्याले
तुम आ जातेतो क्या होता?
सैंतालीस
तुम नहीं आयेमैं डूब रहा हूं शराब में
तुम आ गये तोशराब में रोशनी आ गयी.
अडतालीस
तुम कहां होमैं शराब पीता हूं
तुम आ जाओमैं शराब पीता हूं.
उनचास
तुम्हारे आने परमुझे बताया गया प्रेमी
तुम्हारे जाने के बादमुझे शराबी कहा गया.
पचास
देवताओ, जाओमुझे शराब पीने दो
अप्सराओ, जाओमुझे करने दो प्रेम.
इक्यावन
प्रेम की तरहशराब पीने कानहीं होता कोई समय
यह समयातीत है.
बावन
शराब सेतु हैमनुष्य और कविता के बीच.
सेतु है शराबश्रमिक और कुदाल के बीच.
तिरेपन
सोचता है जुलाहाकाश!करघे पर बुनी जा सकती शराब.
चव्वन
कुम्हार सोचता हैकाश!चाक पर रची जा सकती शराब.
पचपन
सोचता है बढईकाश!आरी से चीरी जा सकती शराब.
छप्पन
स्वप्न है शराब!
जहालत के विरुद्धगरीबी के विरुद्धशोषण के विरुद्धअन्याय के विरुद्ध
मुक्ति का स्वप्न है शराब!
क्षेपक
पांडुलिपि की हस्तलिपि भले उलझन भरी हो, लेकिन उसे कलात्मक कहा जा सकता है. इसे स्याही झरने वाली कलम से जतन से लिखा गया था. अक्षरों की लचक, मात्राओं की फुनगियों और बिंदु, अर्धविराम से जान पडता है कि यह हस्तलिपि स्वअर्जित है. पूर्णविराम का स्थापत्य तो बेजोड है- कहीं कोई भूल नहीं. सीधा सपाट, रीढ की तरह तना हुआ पूर्णविराम. अर्धविराम ऐसा, जैसा थोडा फुदक कर आगे बढा जा सके.
रचयिता का नाम कहीं नहीं पाया गया. डेगाना नामक कस्बे का जिक्र दो-तीन स्थलों पर आता है जिसके आगे जिला नागौर, राजस्थान लिखा गया है. संभवतः वह यहां का रहने वाला हो. डेगाना स्थित 'विश्वकर्मा आरा मशीन' का जिक्र एक स्थल पर आता है- जिसके बाद खेजडे और शीशम की लकडियों के भाव लिखे हुए हैं. बढईगिरी के काम आने वाले राछों (औजारों) यथा आरी, बसूला, हथौडी आदि का उल्लेख भी एक जगह पर है. हो सकता है वह खुद बढाई हो या इस धंधे से जुडा कोई कारीगर. पांडुलिपि के बीच में 'महालक्ष्मी प्रिंटिंग प्रेस, डीडवाना' की एक परची भी फंसी हुई थी, जिस पर कंपोजिंग, छपाई और बाईंडिंग का 4375 (कुल चार हजार तीन सौ पचहत्तर) रुपये का हिसाब लिखा हुआ है. यह संभवतः इस पांडुलिपि के छपने का अनुमानित व्यय था- जिससे जान पडता है कि इस 'कितबिया' को प्रकाशित कराने की इच्छा इसके रचयिता की रही होगी.
रचयिता की औपचारिक शिक्षा दीक्षा का अनुमान पांडुलिपि से लगाना मिश्किल है - यह तो लगभग पक्का है कि वह बीए एमए डिग्रीधारी नहीं था. यह जरूर हैरान करने वाली बात है कि पांडुलिपि में अमीर खुसरो, कबीर, मीर, सूर, तुलसी, गालिब, मीरा, निराला, प्रेमचंद, शरतचंद्र, मंटो, फिराक, फैज, मुक्तिबोध, भुवनेश़वर, मजाज, उग्र, नागार्जुन, बच्चन, नासिर, राजकमल, शैलेंद्र, ऋत्विक घटक, रामकिंकर, सिद्धेश्वरी देवी की पंक्तियां बीच-बीच में गुंथी हुई हैं. यह वाकई विलक्षण और हैरान करने वाली बात है. काल के थपेडों से जूझती हुई, होड लेती हुई कुछ पंक्तियां किस तरह रेगिस्तान के एक 'कामगार' की अंतरआत्मा पर बरसती हैं और वहीं बस जाती हैं- जैसे नदियां हमारे पडोस में बसती हैं.
कृ.क.पटना, 13 फरवरी 2005बसंत पंचमी
सत्तावन
कहीं भी पी जा सकती है शराब
खेतों में खलिहानों मेक्षछार में या उपांत मेंछत पर या सीढियों के झुटपुटे मेंरेल के डिब्बे मेंया फिर किसी लैंपपोस्ट कीझरती हुई रोशनी में
कहीं भी पी जा सकती है शराब.
अठावन
कलवारी में पीने के बादमृत्यु और जीवन से परेवह अविस्मरणीय नृत्य'ठगिनी क्यों नैना झमकावै'
कफन बेच कर अगरघीसू और माधो नहीं पीते शराबतो यह मनुष्यता वंचित रह जातीएक कालजयी कृति से.
उनसठ
देवदास कैसे बनता देवदासअगर शराब न होती.
तब पारो का क्या होताक्या होता चंद्रमुखी काक्या होतारेलगाडी की तरहथरथराती आत्मा का?
साठ
उन नीमबाज आंखों मेंसारी मस्तीकिसकी सी होतीअगर शराब न होती!
आंखों में दमकिसके लिए होताअगर न होता सागर-ओ-मीना?
इकसठ
अगर न होती शराबवाइज का क्या होताक्या होता शेख सहब का
किस कामा लगते धर्मोपदेशक?
बासठ
पीने दे पीने देमस्जिद में बैठ कर
कलवारियांऔर नालियां तोखुदाओं से अटी पडी हैं.
तिरेसठ
'न उनसे मिले न मय पी है'
'ऐसे भी दिन आएंगे'
काल पडेगा मुल्क मेंकिसान करेंगे आत्महत्याएंऔर खेत सूख जाएंगे.
चौंसठ
'घन घमंड नभ गरजत घोराप्रियाहीन मन डरपत मोरा'
ऐसी भयानक रातपीता हूं शराबपीता हूं शराब!
पैंसठ
'हमन को होशियारी क्याहमन हैं इश्क मस्ताना'
डगमगाता है श़राबीडगमगाती है कायनात!
छियासठ
'अपनी सी कर दीनी रेतो से नैना मिलाय के'
तोसे तोसे तोसेनैना मिलाय के
'चल खुसरो घर आपनेरैन भई चहुं देस'
सडसठ
'गोरी सोई सेज परमुख पर डारे केस'
'उदासी बाल खोले सो रही है'
अब बारह का बजर पडा हैमेरा दिल तो कांप उठा है.
जैसे तैसे जिंदा हूंसच बतलाना तू कैसा है.
सबने लिक्खे माफीनामे.हमने तेरा नाम लिखा है.
अडसठ
'वो हाथ सो गये हैंसिरहाने धरे धरे'
अरे उठ अरे चलशराबी थामता है दूसरे शराबी को.
उनहत्तर
'आये थे हंसते खेलते'
'यह अंतिम बेहोशीअंतिम साकीअंतिम प्याला है'
मार्च के फुटपाथों परपत्ते फडफडा रहे हैंपेडों से झड रही हैएक स्त्री के सुबकने की आवाज.
सत्तर
'दो अंखियां मत खाइयोपिया मिलन की आस'
आस उजडती नहीं हैउजडती नहीं है आस
बडबडाता है शराबी.
इकहत्तर
कितना पानी बह गयानदियों में'तो फिर लहू क्या है?'
लहू में घुलती है शराबजैसे शराब घुलती है शराब में.
बहत्तर
'धिक् जीवनसहता ही आया विरोध'
'कन्ये मैं पिता निरर्थक था'
तरल गरल बाबा ने कहा'कई दिनों तक चूल्हा रोयाचक्की रही उदास'
शराबी को याद आयी कविताकई दिनों के बाद
तिहत्तर
राजकमल बढाते हैं चिलमउग्र थाम लेते हैं.
मणिकर्णिका घाट पररात के तीसरे पहरभुवनेश्वर गुफ्तगू करते हैं मजाज से.
मुक्तिबोध सुलगाते हैं बीडीएक शराबीमांगता है उनसे माचिस.
'डासत ही गयी बीत निशा सब'.
चौहत्तर
'मौसे छलकिए जाय हाय रे हायहाय रे हाय'
'चलो सुहाना भरम तो टूटा'
अबे चललकडी के बुरादेघर चल!
सडक का हुस्न है शराबी!
पचहत्तर
'सब आदमी बराबर हैंयह बात कही होगीकिसी सस्ते शराबघर मेंएक बदसूरत शराबी नेकिसी सुंदर शराबी को देख कर.'
यह कार्ल मार्क्स के जन्म केबहुत पहले की बात होगी!
छिहत्तर
मगध में होगीविचारों की कमी
शराबघर तो विचारों से अटे पडे हैं.
सतहत्तर
शराबघर ही होगी शायदआलोचना कीजन्मभूमि!
पहला आलोचक कोई शराबी रहा होगा!
अठहत्तररूप और अंतर्वस्तुशिल्प और कथ्यप्याला और शराब
विलग होते हीबिखर जाएगी कलाकृति!
उनासी
तुझे हम वली समझतेअगर न पीते शराब.
मनुष्य बने रहने के लिए हीपी जाती है शराब!
अस्सी
'होगा किसी दीवार केसाये के तले मीर'
अभी नहीं गिरेगी यह दीवारतुम उसकी ओट में जाकरएक स्त्री को चूम सकते हो
शराबी दीवार को चूम रहा हैचांदनी रात में भीगता हुआ.
इक्यासी
'घुटुकन चलतरेणु तनु मंडित'
रेत पर लोट रहा है रेगिस्तान का शराबी
'रेत है रेत बिखर जाएगी'
किधर जाएगीरात की यह आखिरी बस?
बयासी
भंग की बूटीगांजे की कलीखप्पर की शराब
कासी तीन लोक से न्यारीऔर शराबीतीन लोक का वासी!
तिरासी
लैंप पोस्ट से झरती है रोशनीहारमोनियम से धूल
और शराबी से झरता हैअवसाद.
चौरासी
टेलीविजन के परदे परबाहुबलियों की खबरें सुनाती हैंबाहुबलाएं!
टकटकी लगाये देखता है शराबीविडंबना का यह विलक्षण रूपक
भंते! एक प्याला और.
पिचासी
गंगा के किनारेउल्टी पडी नाव पर लेटा शराबीकौतुक से देखता हैमहात्मा गांधी सेतु को
ऐसे भी लोग हैं दुनिया में'जो नदी को स्पर्श किये बगैरकरते हैं नदियों को पार'और उछाल कर सिक्कानदियों को खरीदने की कोशिश करते हैं!
छियासी
तानाशाह डरता हैशराबियों सेतानाशाह डरता हैकवियों सेवह डरता है बच्चों से नदियों सेएक तिनका भी डराता है उसे
प्यालों की खनखनाहट भर सेकांप जाता है तानाशाह.
सतासी
क्या मैं ईश्वर सेबात कर सकता हूं
शराबी मिलाता है नंबरअंधेरे में टिमटिमाती है रोशनी
अभी आप कतार में हैंकृपया थोडी देर बाद डायल करें.
अठासी
'एहि ठैयां मोतियाहिरायल हो रामा...'
इसी जगह टपका था लहूइसी जगह बरसेगी शराबइसी जगहसृष्टि का सर्वाधिक उत्तेजक ठुमकासर्वाधिक मार्मिक कजरी
इसी जगह इसी जगह
नवासी
'अंतर्राष्ट्रीय सिर्फहवाई जहाज होते हैंकलाकार की जडें होती हैं'
और उन जडों कोसींचना पडता है शराब से!
नब्बे
जिस पेड के नीचे बैठ करऋत्विक घटककुरते की जेब से निकालते हैं अद्-धा
वहीं बन जाता है अड्डा
वहीं हो जाता हैबोधिवृक्ष!
इकरानवे
सबसे बडा अफसानानिगारसबसे बडा शाइरसबसे बडा चित्रकारऔरा सबसे बडा सिनेमाकार
अभी भी जुटते हैंकभी कभीकिसी उजडे हुए शराबघर में!
बानवे
हमें भी लटका दिया जाएगाकिसी रोज फांसी के तख्ते परधकेल दिया जाएगासलाखों के पीछे
हमारी भी फाकामस्तीरंग लाएगी एक दिन!
तिरानवे(मंटो की स्मृति में)
कब्रगाह में सोया है शराबीसोचता हुआ
वह बडा शराबी हैया खुदा!
चौरानवे
ऐसी ही होती है मृत्युजैसे उतरता है नशा
ऐसा ही होता है जीवनजैसे चढती है शराब.
पिचानवे
'हां, मैंने दिया है दिलइस सारे किस्से मेंये चांद भी है शामिल.'
आंखों में रहे सपनामैं रात को आऊंगादरवाजा खुला रखना.
चांदनी में चिनाबहोठों पर माहिएहाथों में शराबऔर क्या चाहिए!
छियानवे
रिक्शों पर प्यार थागाडियों में व्यभिचार
जितनी बडी गाडी थीउतना बडा था व्यभिचार
रात में घर लौटता शराबीखंडित करता है एक विखंडित वाक्यवलय में खोजता हुआ लय.
सतानवे
घर टूट गयारीत गया प्यालाधूसर गंगा के किनारेप्रस्फुटित हुआ अग्नि का पुष्पसांझ के अवसान में हुआदेह का अवसान
षरती से कम हो गया एक शराबी!
अठानवे
निपट भोर में'किसी सूतक का वस्त्र पहने'वह योवा शराबीकल के दाह संस्कार कीराख कुरेद रहा है
क्या मिलेगा उसेटूटा हुआ प्याला फेंका हुआ सिक्काया पहले तोड की अजस्र धार!
आखिर जुस्तजू क्या है?