Wednesday, January 30, 2008

एक शराबी की सूक्तियां

और इतने दिन बाद एक बार फिर कुछ लिखने की सूझीं और चल पड़ा लिखने
कृष्ण कल्पित, जो कि हिंदी में खूब पढे जाने वाले कवि हैं, इन दिनों अपने एक काम से खासी सुर्खियों में हैं.वह काम है उनकी नइ रचना एक शराबी की सूक्तियां जिसे पूरा का पूरा यहां पेश कर रहा हूंएक
शराबी के लिएहर रातआखिरी रात होती है.
शराबी की सुबहहर रोजएक नयी सुबह.
दो
हर शराबी कहता हैदूसरे शराबी सेकम पिया करो.
शराबी शराबी केगले मिलकर रोता है.शराबी शराबी केगले मिलकर हंसता है.
तीन
शराबी कहता हैबात सुनोऐसी बातफिर कहीं नहीं सुनोगे.
चार
शराब होगी जहांवहां आसपास ही होगाचना चबैना.
पांच
शराबी कवि ने कहाइस बार पुरस्कृत होगावह कविजो शराब नहीं पीता.
छह
समकालीन कवियों मेंसबसे अच्छा शराबी कौन है?समकालीन शराबियों मेंसबसे अच्छा कवि कौन है?
सात
भिखारी को भीख मिल ही जाती हैशराबी को शराब.
आठ
मैं तुमसे प्यार करता हूं
शराबी कहता हैरास्ते में हर मिलने वाले से.
नौ
शराबी कहता हैमैं शराबी नहीं हूं
शराबी कहता हैमुझसे बेहतर कौन गा सकता है?
दस
शराबी की बात का विश्वास मत करना.शराबी की बात का विश्वास करना.
शराबी से बुरा कौन है?शराबी से अच्छा कौन है?
ग्यारह
शराबीअपनी प्रिय किताब के पीछेछिपाता है शराब.
बारह
एक शराबी पहचान लेता हैदूसरे शराबी को
जैसे एक भिखारी दूसरे को.
तेरह
थोडा सा पानीथोडा सा पानी
सारे संसार के शराबियों के बीचयह गाना प्रचलित है.
चौदह
स्त्रियां शराबी नहीं हो सकतींशराबी को हीहोना पडता है स्त्री.
पंद्रह
सिर्फ शराब पीने सेकोई शराबी नहीं हो जाता.
सोलह
कौन सी शराबशराबी कभी नहीं पूछता
सत्रह
आजकल मिलते हैंसजे-धजे शराबी
कम दिखाई पडते हैं सच्चे शराबी.
अठारह
शराबी से कुछ कहना बेकार.शराबी को कुछ समझाना बेकार.
उन्नीस
सभी सरहदों से परेधर्म, मजहब, रंग, भेद और भाषाओं के पारशराबी एक विश्व नागरिक है.
बीस
कभी सुना हैकिसी शराबी को अगवा किया गया?
कभी सुना हैकिसी शराबी को छुडवाया गया फिरौती देकर?
इक्कीस
सबने लिक्खा - वली दक्कनीसबने लिक्खे - मृतकों के बयानकिसी ने नहीं लिखावहां पर थी शराब पीने पर पाबंदीशराबियों से वहांअपराधियों का सा सलूक किया जाता था.
बाईस
शराबी के पासनहीं पायी जाती शराबहत्यारे के पास जैसेनहीं पाया जाता हथियार.
तेईस
शराबी पैदाइशी होता हैउसे बनाया नहीं जा सकता.
चौबीस
एक महफिल मेंकभी नहीं होतेदो शराबी.
पच्चीस
शराबी नहीं पूछता किसी सेरास्ता शराबघर का.
छब्बीस
महाकवि की तरहमहाशराबी कुछ नहीं होता.
सत्ताईस
पुरस्कृत शराबियों के पासबचे हैं सिर्फ पीतल के तमगेउपेक्षित शराबियों के पासअभी भी बची हैथोडी सी शराब.
अट्ठाईस
दिल्ली के शराबी कोकौतुक से देखता हैपूरब का शराबी
पूरब के शराबी कोकुछ नहीं समझताधुर पूरब का शराबी.
उनतीस
शराबी से नहीं लिया जा सकताबच्चों को डराने का काम.
तीस
कविता का भी बन चला है अबछोटा मोटा बाजार
सिर्फ शराब पीना ही बचा है अबस्वांतः सुखय कर्म.
इकतीस
बाजार कुछ नही बिगाड पायाशराबियों का
हलांकि कई बार पेश किये गयेप्लास्टिक के शराबी.
बत्तीस
आजकल कवि भी होने लगे हैं सफल
आज तक नहीं सुना गयाकभी हुआ है कोई सफल शराबी.
तैंतीस
कवियों की छोडिएकुत्ते भी जहां पा जाते हैं पदककभी नहीं सुना गयाकिसि शराबी को पुरस्कृत किया गया.
चौंतीस
पटना का शराबी कहना ठीक नहीं
कंकडबाग के शराबी सेकितना अलग और अलबेला हैइनकमटैक्स गोलंबर का शराबी.
पैंतीस
कभी प्रकाश में नहीं आता शराबी
अंधेरे में धीरे धीरेविलीन हो जाता है.
छत्तीस
शराबी के बच्चेअक्सर शराब नहीं पीते.
सैंतीस
स्त्रियां सुलाती हैंडगमगाते शराबियों को
स्त्रियों ने बचा रखी हैशराबियों की कौम
अडतीस
स्त्रियों के आंसुओं से जो बनती हैउस शराब काकोई जवाब नहीं.
उनचालीस
कभी नहीं देखा गयाकिसी शराबी कोभूख से मरते हुए.
चालीस
यात्राएं टालता रहता है शराबी
पता नही वहां परकैसी शराब मिलेकैसे शराबी!
इकतालीस
धर्म अगर अफीम हैतो विधर्म है शराब
बयालीस
समरसता कहां होगीशराबघर के अलावा?
शराबी के अलावाकौन होगा सच्चा धर्मनिरपेक्ष
तैंतालीस
शराब ने मिटा दियेराजशाही, रजवाडे और सामंत
शराब चाहती है दुनिया मेंसच्चा लोकतंत्र
चवालीस
कुछ जी रहे हैं पीकरकुछ बगैर पिये.
कुछ मर गये पीकरकुछ बगैर पिये.
पैंतालीस
नहीं पीने में जो मजा हैवह पीने में नहींयह जाना हमने पीकर.
छियालीस
इंतजार में हीपी गये चार प्याले
तुम आ जातेतो क्या होता?
सैंतालीस
तुम नहीं आयेमैं डूब रहा हूं शराब में
तुम आ गये तोशराब में रोशनी आ गयी.
अडतालीस
तुम कहां होमैं शराब पीता हूं
तुम आ जाओमैं शराब पीता हूं.
उनचास
तुम्हारे आने परमुझे बताया गया प्रेमी
तुम्हारे जाने के बादमुझे शराबी कहा गया.
पचास
देवताओ, जाओमुझे शराब पीने दो
अप्सराओ, जाओमुझे करने दो प्रेम.
इक्यावन
प्रेम की तरहशराब पीने कानहीं होता कोई समय
यह समयातीत है.
बावन
शराब सेतु हैमनुष्य और कविता के बीच.
सेतु है शराबश्रमिक और कुदाल के बीच.
तिरेपन
सोचता है जुलाहाकाश!करघे पर बुनी जा सकती शराब.
चव्वन
कुम्हार सोचता हैकाश!चाक पर रची जा सकती शराब.
पचपन
सोचता है बढईकाश!आरी से चीरी जा सकती शराब.
छप्पन
स्वप्न है शराब!
जहालत के विरुद्धगरीबी के विरुद्धशोषण के विरुद्धअन्याय के विरुद्ध
मुक्ति का स्वप्न है शराब!
क्षेपक
पांडुलिपि की हस्तलिपि भले उलझन भरी हो, लेकिन उसे कलात्मक कहा जा सकता है. इसे स्याही झरने वाली कलम से जतन से लिखा गया था. अक्षरों की लचक, मात्राओं की फुनगियों और बिंदु, अर्धविराम से जान पडता है कि यह हस्तलिपि स्वअर्जित है. पूर्णविराम का स्थापत्य तो बेजोड है- कहीं कोई भूल नहीं. सीधा सपाट, रीढ की तरह तना हुआ पूर्णविराम. अर्धविराम ऐसा, जैसा थोडा फुदक कर आगे बढा जा सके.
रचयिता का नाम कहीं नहीं पाया गया. डेगाना नामक कस्बे का जिक्र दो-तीन स्थलों पर आता है जिसके आगे जिला नागौर, राजस्थान लिखा गया है. संभवतः वह यहां का रहने वाला हो. डेगाना स्थित 'विश्वकर्मा आरा मशीन' का जिक्र एक स्थल पर आता है- जिसके बाद खेजडे और शीशम की लकडियों के भाव लिखे हुए हैं. बढईगिरी के काम आने वाले राछों (औजारों) यथा आरी, बसूला, हथौडी आदि का उल्लेख भी एक जगह पर है. हो सकता है वह खुद बढाई हो या इस धंधे से जुडा कोई कारीगर. पांडुलिपि के बीच में 'महालक्ष्मी प्रिंटिंग प्रेस, डीडवाना' की एक परची भी फंसी हुई थी, जिस पर कंपोजिंग, छपाई और बाईंडिंग का 4375 (कुल चार हजार तीन सौ पचहत्तर) रुपये का हिसाब लिखा हुआ है. यह संभवतः इस पांडुलिपि के छपने का अनुमानित व्यय था- जिससे जान पडता है कि इस 'कितबिया' को प्रकाशित कराने की इच्छा इसके रचयिता की रही होगी.
रचयिता की औपचारिक शिक्षा दीक्षा का अनुमान पांडुलिपि से लगाना मिश्किल है - यह तो लगभग पक्का है कि वह बीए एमए डिग्रीधारी नहीं था. यह जरूर हैरान करने वाली बात है कि पांडुलिपि में अमीर खुसरो, कबीर, मीर, सूर, तुलसी, गालिब, मीरा, निराला, प्रेमचंद, शरतचंद्र, मंटो, फिराक, फैज, मुक्तिबोध, भुवनेश़वर, मजाज, उग्र, नागार्जुन, बच्चन, नासिर, राजकमल, शैलेंद्र, ऋत्विक घटक, रामकिंकर, सिद्धेश्वरी देवी की पंक्तियां बीच-बीच में गुंथी हुई हैं. यह वाकई विलक्षण और हैरान करने वाली बात है. काल के थपेडों से जूझती हुई, होड लेती हुई कुछ पंक्तियां किस तरह रेगिस्तान के एक 'कामगार' की अंतरआत्मा पर बरसती हैं और वहीं बस जाती हैं- जैसे नदियां हमारे पडोस में बसती हैं.
कृ.क.पटना, 13 फरवरी 2005बसंत पंचमी
सत्तावन
कहीं भी पी जा सकती है शराब
खेतों में खलिहानों मेक्षछार में या उपांत मेंछत पर या सीढियों के झुटपुटे मेंरेल के डिब्बे मेंया फिर किसी लैंपपोस्ट कीझरती हुई रोशनी में
कहीं भी पी जा सकती है शराब.
अठावन
कलवारी में पीने के बादमृत्यु और जीवन से परेवह अविस्मरणीय नृत्य'ठगिनी क्यों नैना झमकावै'
कफन बेच कर अगरघीसू और माधो नहीं पीते शराबतो यह मनुष्यता वंचित रह जातीएक कालजयी कृति से.
उनसठ
देवदास कैसे बनता देवदासअगर शराब न होती.
तब पारो का क्या होताक्या होता चंद्रमुखी काक्या होतारेलगाडी की तरहथरथराती आत्मा का?
साठ
उन नीमबाज आंखों मेंसारी मस्तीकिसकी सी होतीअगर शराब न होती!
आंखों में दमकिसके लिए होताअगर न होता सागर-ओ-मीना?
इकसठ
अगर न होती शराबवाइज का क्या होताक्या होता शेख सहब का
किस कामा लगते धर्मोपदेशक?
बासठ
पीने दे पीने देमस्जिद में बैठ कर
कलवारियांऔर नालियां तोखुदाओं से अटी पडी हैं.
तिरेसठ
'न उनसे मिले न मय पी है'
'ऐसे भी दिन आएंगे'
काल पडेगा मुल्क मेंकिसान करेंगे आत्महत्याएंऔर खेत सूख जाएंगे.
चौंसठ
'घन घमंड नभ गरजत घोराप्रियाहीन मन डरपत मोरा'
ऐसी भयानक रातपीता हूं शराबपीता हूं शराब!
पैंसठ
'हमन को होशियारी क्याहमन हैं इश्क मस्ताना'
डगमगाता है श़राबीडगमगाती है कायनात!
छियासठ
'अपनी सी कर दीनी रेतो से नैना मिलाय के'
तोसे तोसे तोसेनैना मिलाय के
'चल खुसरो घर आपनेरैन भई चहुं देस'
सडसठ
'गोरी सोई सेज परमुख पर डारे केस'
'उदासी बाल खोले सो रही है'
अब बारह का बजर पडा हैमेरा दिल तो कांप उठा है.
जैसे तैसे जिंदा हूंसच बतलाना तू कैसा है.
सबने लिक्खे माफीनामे.हमने तेरा नाम लिखा है.
अडसठ
'वो हाथ सो गये हैंसिरहाने धरे धरे'
अरे उठ अरे चलशराबी थामता है दूसरे शराबी को.
उनहत्तर
'आये थे हंसते खेलते'
'यह अंतिम बेहोशीअंतिम साकीअंतिम प्याला है'
मार्च के फुटपाथों परपत्ते फडफडा रहे हैंपेडों से झड रही हैएक स्त्री के सुबकने की आवाज.
सत्तर
'दो अंखियां मत खाइयोपिया मिलन की आस'
आस उजडती नहीं हैउजडती नहीं है आस
बडबडाता है शराबी.
इकहत्तर
कितना पानी बह गयानदियों में'तो फिर लहू क्या है?'
लहू में घुलती है शराबजैसे शराब घुलती है शराब में.
बहत्तर
'धिक् जीवनसहता ही आया विरोध'
'कन्ये मैं पिता निरर्थक था'
तरल गरल बाबा ने कहा'कई दिनों तक चूल्हा रोयाचक्की रही उदास'
शराबी को याद आयी कविताकई दिनों के बाद
तिहत्तर
राजकमल बढाते हैं चिलमउग्र थाम लेते हैं.
मणिकर्णिका घाट पररात के तीसरे पहरभुवनेश्वर गुफ्तगू करते हैं मजाज से.
मुक्तिबोध सुलगाते हैं बीडीएक शराबीमांगता है उनसे माचिस.
'डासत ही गयी बीत निशा सब'.
चौहत्तर
'मौसे छलकिए जाय हाय रे हायहाय रे हाय'
'चलो सुहाना भरम तो टूटा'
अबे चललकडी के बुरादेघर चल!
सडक का हुस्न है शराबी!
पचहत्तर
'सब आदमी बराबर हैंयह बात कही होगीकिसी सस्ते शराबघर मेंएक बदसूरत शराबी नेकिसी सुंदर शराबी को देख कर.'
यह कार्ल मार्क्स के जन्म केबहुत पहले की बात होगी!
छिहत्तर
मगध में होगीविचारों की कमी
शराबघर तो विचारों से अटे पडे हैं.
सतहत्तर
शराबघर ही होगी शायदआलोचना कीजन्मभूमि!
पहला आलोचक कोई शराबी रहा होगा!
अठहत्तररूप और अंतर्वस्तुशिल्प और कथ्यप्याला और शराब
विलग होते हीबिखर जाएगी कलाकृति!
उनासी
तुझे हम वली समझतेअगर न पीते शराब.
मनुष्य बने रहने के लिए हीपी जाती है शराब!
अस्सी
'होगा किसी दीवार केसाये के तले मीर'
अभी नहीं गिरेगी यह दीवारतुम उसकी ओट में जाकरएक स्त्री को चूम सकते हो
शराबी दीवार को चूम रहा हैचांदनी रात में भीगता हुआ.
इक्यासी
'घुटुकन चलतरेणु तनु मंडित'
रेत पर लोट रहा है रेगिस्तान का शराबी
'रेत है रेत बिखर जाएगी'
किधर जाएगीरात की यह आखिरी बस?
बयासी
भंग की बूटीगांजे की कलीखप्पर की शराब
कासी तीन लोक से न्यारीऔर शराबीतीन लोक का वासी!
तिरासी
लैंप पोस्ट से झरती है रोशनीहारमोनियम से धूल
और शराबी से झरता हैअवसाद.
चौरासी
टेलीविजन के परदे परबाहुबलियों की खबरें सुनाती हैंबाहुबलाएं!
टकटकी लगाये देखता है शराबीविडंबना का यह विलक्षण रूपक
भंते! एक प्याला और.
पिचासी
गंगा के किनारेउल्टी पडी नाव पर लेटा शराबीकौतुक से देखता हैमहात्मा गांधी सेतु को
ऐसे भी लोग हैं दुनिया में'जो नदी को स्पर्श किये बगैरकरते हैं नदियों को पार'और उछाल कर सिक्कानदियों को खरीदने की कोशिश करते हैं!
छियासी
तानाशाह डरता हैशराबियों सेतानाशाह डरता हैकवियों सेवह डरता है बच्चों से नदियों सेएक तिनका भी डराता है उसे
प्यालों की खनखनाहट भर सेकांप जाता है तानाशाह.
सतासी
क्या मैं ईश्वर सेबात कर सकता हूं
शराबी मिलाता है नंबरअंधेरे में टिमटिमाती है रोशनी
अभी आप कतार में हैंकृपया थोडी देर बाद डायल करें.
अठासी
'एहि ठैयां मोतियाहिरायल हो रामा...'
इसी जगह टपका था लहूइसी जगह बरसेगी शराबइसी जगहसृष्टि का सर्वाधिक उत्तेजक ठुमकासर्वाधिक मार्मिक कजरी
इसी जगह इसी जगह
नवासी
'अंतर्राष्ट्रीय सिर्फहवाई जहाज होते हैंकलाकार की जडें होती हैं'
और उन जडों कोसींचना पडता है शराब से!
नब्बे
जिस पेड के नीचे बैठ करऋत्विक घटककुरते की जेब से निकालते हैं अद्-धा
वहीं बन जाता है अड्डा
वहीं हो जाता हैबोधिवृक्ष!
इकरानवे
सबसे बडा अफसानानिगारसबसे बडा शाइरसबसे बडा चित्रकारऔरा सबसे बडा सिनेमाकार
अभी भी जुटते हैंकभी कभीकिसी उजडे हुए शराबघर में!
बानवे
हमें भी लटका दिया जाएगाकिसी रोज फांसी के तख्ते परधकेल दिया जाएगासलाखों के पीछे
हमारी भी फाकामस्तीरंग लाएगी एक दिन!
तिरानवे(मंटो की स्मृति में)
कब्रगाह में सोया है शराबीसोचता हुआ
वह बडा शराबी हैया खुदा!
चौरानवे
ऐसी ही होती है मृत्युजैसे उतरता है नशा
ऐसा ही होता है जीवनजैसे चढती है शराब.
पिचानवे
'हां, मैंने दिया है दिलइस सारे किस्से मेंये चांद भी है शामिल.'
आंखों में रहे सपनामैं रात को आऊंगादरवाजा खुला रखना.
चांदनी में चिनाबहोठों पर माहिएहाथों में शराबऔर क्या चाहिए!
छियानवे
रिक्शों पर प्यार थागाडियों में व्यभिचार
जितनी बडी गाडी थीउतना बडा था व्यभिचार
रात में घर लौटता शराबीखंडित करता है एक विखंडित वाक्यवलय में खोजता हुआ लय.
सतानवे
घर टूट गयारीत गया प्यालाधूसर गंगा के किनारेप्रस्फुटित हुआ अग्नि का पुष्पसांझ के अवसान में हुआदेह का अवसान
षरती से कम हो गया एक शराबी!
अठानवे
निपट भोर में'किसी सूतक का वस्त्र पहने'वह योवा शराबीकल के दाह संस्कार कीराख कुरेद रहा है
क्या मिलेगा उसेटूटा हुआ प्याला फेंका हुआ सिक्काया पहले तोड की अजस्र धार!
आखिर जुस्तजू क्या है?

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