Monday, September 22, 2008

भारत में सक्रिय आतंकवादी संगठन

भारत में उग्रवादी संगठनों की सूची दिनोदिन बढ़ती ही जा रही है। आए दिन होने वाली आतंकवादी वारदातों में किसी नए संगठन का नाम सामने आता है, या फिर कोई नया संगठन हमले की जिम्मेदारी लेता है। जयपुर में हुए बम विस्फोटों की जिम्मेदारी इंडियन मुजाहिदीन ने ली है, हाँलाकि सुरक्षा एजेंसियों को इस दावे पर पूरा भरोसा नहीं है।

यह अल्पज्ञात आतंकी संगठन पहले भी कुछ वारदातों की जिम्मेदारी ले चुका है। केंद्रीय गृह मंत्रालय राज्य सरकारों की पुलिस और खुफिया तंत्र से मिली जानकारी के आधार पर इन उग्रवादी और पृथकतावादी संगठनों पर नजर रखता है और इनके खिलाफ सतत कार्रवाई चलती रहती है।

केंद्र सरकार विधि विरुद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम 2004 के तहत 32 गिरोहों को आतंकवादी संगठन के रूप में प्रतिबंधित कर चुकी है।

प्रतिबंधित उग्रवादी संगठन
* बब्बर खालसा इंटरनेशनल
* खालिस्तान कमांडो फोर्स
* खालिस्तान जिंदाबाद फोर्स
* इंटरनेशनल सिख यूथ फेडरेशन
* लश्कर-ए-तोइबा/पासवान-ए-अहले हदीस
* जैश-ए-मोहम्मद/तहरीक-ए-फुरकान
*हरकत-उल- मुजाहिनद्दीन- हरकत-उल- जेहाद-ए-इस्लामी
* हिज्ब-उल-मुजाहिद्दीनर, पीर पंजाब रेजीमेंट
* अल-उमर-इस्लामिक फ्रंट
* यूनाइटेड लिब्रेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा)
* नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट बोडोलेंड (एनडीएफबी)
* पीपल्स लिब्रेशन आमी (पीएलए)
* यूनाइटेड नेशनल लिब्रेशन फ्रंट (यहव, एनएलएफ)
* पीपल्स रिवोल्यूशनरी पार्टी ऑफ कांग्लेईपाक (पीआरईपीएके)
* कांग्लेईपाक कम्युनिस्ट पार्टी (केसीपी)
* कैंग्लई याओल कन्चालुम (केवाईकेएल)
* मणिपुर पीपल्स लिब्रेशन फ्रंट (एमपीएलफ)
* आल त्रिपुरा टाइगर फोर्स
* नेशनल लिब्रेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा
* लिब्रेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (एलटीटीई)
* स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया
* दीनदार अंजुमन
*कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) पीपल्स वार, इसके सभी फार्मेशन और प्रमुख संगठन।
* माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर (एमसीसी) इसके सभी फार्मेशन और प्रमुख संगठन।
* अल बदर
* जमायत-उल-मुजाहिद्दीन
* अल-कायदा
* दुखतरान-ए-मिल्लत (डीईएम)
* तमिलनाडु लिबरेशन आर्मी (टीएनएलए)
* तमिल नेशनल रिट्रीवॅल टुप्स (टीएनआरटी)
* अखिल भारत नेपाली एकता समाज (एबीएनईएस)

चंद्रमा पर उपग्रह भेजना उचित है?

देश में चारों तरफ खुशहाली फैली है, लहलहाती फसलों से किसानों की चाँदी हो रही है, आतंकवाद का नामोनिशां नहीं है, देश की आर्थिक स्थिति दिन-ब-दिन मजबूत होती जा रही है...ऐसे हालातों के बीच अगर 386 करोड़ रुपए खर्च कर चंद्रमा पर चंद्रयान भेजा जाए तो बात समझ में आती है, लेकिन क्या हमारे देश के हालात ऐसे हैं? नहीं। फिर क्या ऐसे समय में चंद्रमा पर उपग्रह भेजना उचित है?

जरूरी है, मगर... : माना कि देश के विकास में अंतरिक्ष यान प्रक्षेपण का भी बड़ा हाथ होता है। इससे जाहिर होता है कि देश तकनीक के मामले में भी दूसरे देशों की बराबरी कर रहा है।

इसरो ने कल चंद्रयान-1 के दीदार देश को कराए। इसरो इस पर लंबे समय से काम कर रहा था और यह उसकी महती योजना का हिस्सा था। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जब पहली बार इस योजना का खुलासा किया था, तब विश्व बिरादरी को भरोसा नहीं था कि भारत ऐसा कर पाएगा, लेकिन आखिर हम उस मुकाम पर पहुँच ही गए, जहाँ से देश अपना पहला चंद्रयान भेजेगा।

पीएसएलवी (पोलर सैटेलाइट लॉन्च वीइकल) चंद्रयान को लेकर अंतरिक्ष की उड़ान भरेगा। इसकी तिथि तय नहीं की गई है, लेकिन 22 से 26 अक्टूबर के बीच इसे छोड़ा जाएगा।

आधुनिकता की मिसाल : चंद्रमा के बारे में जानकारियाँ जुटाने के लिए चंद्रयान में उच्च तकनीक वाले यंत्र मौजूद हैं। इसके प्रक्षेपण के उद्देश्यों के बारे में जानकारी देते हुए इसरो के सैटेलाइट केंद्र के निदेशक डॉ. टीके एलेक्स ने बताया कि यह चंद्रमा के बनने की प्रक्रिया के बारे अहम जानकारी भेजेगा।

इसके माध्यम से चंद्रमा की सतह पर प्रयोग भी किए जाएँगे। यह दो साल के दौरान चाँद की सतह का पूरा नक्शा भेजेगा।


परीक्षण अभी बाकी : बहरहाल, चंद्रयान को अभी-भी कुछ अहम परीक्षणों से गुजरना है। बेंगलुरु में यह जाँच की जाएगी। सफल रहने पर ही इसका प्रक्षेपण घोषित तिथि को हो सकेगा, वरना 5 महीने देरी से पूरी हुई यह योजना कुछ और समय ले सकती है।

इसरो के वैज्ञानिकों ने बताया है कि कम्पन और ध्वनि को लेकर चंद्रयान के अहम टेस्ट अभी बाकी हैं। स्पेसक्राफ्ट को पहले भारी कम्पन और फिर चार जेट विमानों के बराबर ध्वनि पर परखा जाएगा।

जीवन की संभावना तलाशेगा : इसरो के परियोजना प्रमुख डॉ. अन्ना दुराई ने बताया कि चंद्रयान चंद्रमा पर जीवन की संभावनाएँ भी तलाशेगा। हालाँकि तकनीकी परेशानियों के चलते यह चंद्रमा की सतह पर उतर नहीं सकेगा, लेकिन उसके आसपास मँडराएगा। इससे भी कई अहम जानकारी हासिल होगी।

चंद्रयान-2 को भी हरी झंडी : इधर, चंद्रयान-1 के बारे में जानकारी दी जा रही थी और उधर सरकार चंद्रयान-2 को हरी झंडी देने में लगी थी। कल कैबिनेट ने इस आशय का फैसला लिया। इस योजना पर 425 करोड़ रुपए का खर्च आएगा।

देश की सचाई : भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को देखकर लगता है कि यहाँ नागरिकों की मूलभूत जरूरतें पूरी चुकी हैं और देश आंतरिक तौर पर किसी बड़ी परेशानी से नहीं जूझ रहा है, लेकिन ऐसा नहीं है। देश पर कई विपदाएँ मँडरा रही हैं, जिनका हल पहले खोजा जाना चाहिए।

हाल ही में बिहार में अब तक की सबसे भीषण बाढ़ ने कहर बरपाया है। 20 लाख से अधिक लोग बेखर हो चुके हैं। 1000 करोड़ रुपए से अधिक की राशि भी कम लग रही है। इस प्राकृतिक आघात के निशान शायद बिहार के मानचित्र से मिट ही न पाएँ।

अब सौराष्ट्र जैसे दूसरे क्षेत्रों में बाढ़ का पानी भरता जा रहा है। बेबस किसानों को इसका सबसे अधिक खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। बताते हैं कि असम में बाढ़ का खतरा बना हुआ है।

आतंकवाद को सरकार रोक नहीं पा रही है। आतंकियों के हौसले इतने बुलंद हो चुके हैं कि वे पहले से घोषणा कर धमाके कर रहे हैं। हर बार सरकार का रवैया वही रहा है...जाँच की जाएगी, कुछ लोगों को गिरफ्तार किया जाएगा, मुकदमा चलेगा, लेकिन फैसला कुछ नहीं हो पाएगा। लाखों लोगों की जिंदगी आतंकवाद के चलते नर्क हो गई है।

प्राथमिकता क्या है?
सरकार भले ही ‘मिशन मून’ को लेकर अपनी पीठ थपथपाए, लेकिन सवाल उठाए जा रहे हैं कि उसकी प्राथमिकता क्या है...नागरिकों की परेशानियाँ दूर करना, भूखों को रोटी खिलाना, आतंकियों को रोकना या चाँद पर जीवन की तलाश करना? जहाँ जीवन है, उसकी परवाह नहीं की जा रही है।

Tuesday, September 9, 2008

शर्म हमें शायद अब भी नहीं आएगी

एक बार फिर हाजि़र हैं, नागेन्‍द्र अपनी पैनी निगाह और मामूली से अल्‍फाज के साथ, मामूली से लोगों की बेहाल जिंदगी बयान करने के लिए। ऐसी बेदर्दी, ऐसी है‍वानियत... उफ्फ... संकट की घड़ी में ऐसा सुलूक... सच है, शर्म वाकई में मगर हमें/इनको नहीं आएगी। इन्‍हें आप किन अल्‍फाज़ से नवाज़ेंगे। इनके लिए आप किस सजा की तजवीज करेंगे। ये शब्‍दों से ऊपर हैं और सजा तो शायद इनके लिए है ही नहीं। हिन्‍दुस्‍तान, भागलपुर के स्‍थानीय सम्‍पादक नागेन्‍द्र (Nagendra) की यह रिपोर्ट। हिन्‍दुस्‍तान से शुक्रिया के साथ।

शर्म हमें शायद अब भी नहीं आएगी
बाढ़ग्रस्त इलाकों की चिकित्सा व्यवस्था में छेद ही छेद हैं
सुपौल और सहरसा से लौटकर नागेन्‍द्र

बिहार के बाढ़ग्रस्त इलाकों में सरकारी चिकित्सा इंतजामों की बार-बार ढँकी जा रही परत खोलने के लिए त्रिवेणीगंज की यह घटना पर्याप्त है। पिछले पाँच दिनों में वहाँ जो कुछ हुआ उससे आक्रांत लोग अब रेफरल अस्पताल छोड़ कर भागने लगे हैं। लिखते हुए भी शर्म आती है लेकिन यह सच बहुत क्रूर है।

एक गर्भवती महिला वहाँ लाई गई। हालत बिगड़ी। उसका बच्च गर्भ में ही मर चुका था। आधा बाहर आ चुका था। कई दिन इसी हाल में पड़ा रहा। मचहा गाँव की इस महिला का हाल देख रेफरल अस्पताल के डाक्टरों ने इसे सहरसा जने की सलाह दी। वहाँ कोई भर्ती करने को तैयार नहीं हुआ। उसे फिर त्रिवेणीगंज ले गए जहाँ वह रविवार तक इसी हाल में पड़ी थी। बदबू भी आने लगी तो डाक्टरों ने अपना आउटडोर खुले मैदान में लगा लिया लेकिन उसकी ओर नहीं देखा। ‘हिन्दुस्तान’ में खबर छपी तो सब सक्रिय हुए। उसे फिर सुपौल भेजा गया। अभी शाम को (सोमवार) खबर आई है कि चिकित्सा तंत्र की संवेदनहीनता का शिकार हुई यह महिला फिर सहरसा पहुँचा दी गई थी जहाँ उसने दम तोड़ दिया है।

बाढ़ग्रस्त इलाकों में चिकित्सा सुविधाओं पर आश्वस्त होने वाले सरकारी तंत्र के लिए यह एक सूचना ही शायद काफी होगी अपनी पीठ थपथपाने की परिपाटी पर शर्म करने के लिए।

बिहार में बाढ़ की विभीषिका के बीच की गई चिकित्सा व्यवस्थाओं का जमीनी सच तो यही है लेकिन पता नहीं वह कौन सा नामालूम तंत्र और पद्धति है जिसके जरिए मानीटरिंग करने वाले सरकारी लोग भी वहाँ से संतुष्ट होकर लौट रहे हैं। केन्‍द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की उच्चस्तरीय टीम ने सहरसा के राहत शिविरों का निरीक्षण कर दवाओं की उपलब्धता और स्वच्छता पर संतोष व्यक्त किया है (यह खबर आज ही छपी है)। यह हतप्रभ करने वाला है।

दरअसल केन्‍द्रीय हो या राज्य की मानिटरिंग टीम, तरीका तो सब का सरकारी ही है। जिला मुख्यालय के सर्किट हाउसों में बैठकर या जीप से मुआयना करने से पूरा सच सामने नहीं आता। इसके लिए भीतर के उन स्थानों तक पहुँचने की जरूरत है जहां असल संकट है। रंगीन बत्ती लगी टाटा सफारी में बैठे एक बड़े अफसर जिस तरह सहरसा में शनिवार को मातहतों से रिपोर्ट ले रहे थे ‘व्यवस्थाओं पर संतुष्टि का यह सर्टिफिकेट’ शायद इसी पद्धति की देन है। उन्हें यह सच पता ही नहीं चल पाता (या शायद वे जनना नहीं चाहते) कि दूरदराज इलाकों से लोग अब भी अपने ही तरीके से, अपने संसाधनों से अपना इलाज कर रहे हैं।

सुपौल, सहरसा, मधेपुरा, अररिया टाउन ही नहीं टेढ़े-मेढ़े, टूट कर किसी तरह बने रास्तों का लंबा सफर तय कर काफी अंदर बसे नरपतगंज (अररिया), त्रिवेणीगंज (सुपौल), भंगहा (पूर्णिया-मधेपुरा सीमा पर) और सिंहेश्वर (मधेपुरा) में चिकित्सा व्यवस्था का ऐसा ही नजारा दिखाई देता है। बाढ़ की विभीषिका से अंदर तक टूट चुके इन इलाकों में राजनीतिक दलों या उनसे जुड़े संगठनों के राहत शिविरों की तो भरमार है और चटखदार भोजन खिलाने की होड़ भी लेकिन एक भी शिविर ऐसा नहीं जहाँ दवा और डाक्टर का समुचित इंतजाम हो। चिकित्सा देने वाले ऐसे शिविर या तो गैर सरकारी संगठन चला रहे हैं या फिर सेना और अर्धसैनिक बल। सरकारी मेडिकल शिविर हैं लेकिन इनकी रफ्तार वही बेढंगी। संख्या भी काफी कम है।

त्रिवेणीगंज प्रखंड के भुतहीपुल की मुरलीगंज ५४ संख्या नहर पर एक छोटा-मोटा कस्बा बसा दिखाई देता है। इसे सेना और सीआईएसएफ की नेशनल डिजास्टर रेस्पांस फोर्स (एनडीआरएफ) ने बसाया है। वे लोगों को अब भी दूर-दराज से बचाकर ला रहे हैं, उन्हें भोजन करा रहे हैं, सुरक्षित शिविरों तक पहुँचा रहे हैं। इसी नहर पर उनका मेडिकल कैम्प भी है। सारी सुविधाओं के साथ। सेना का डाक्टर मरीजों को देखता है और जवान उन्हें दवा देते हैं। आधा मर्ज तो इन जवानों के प्यार से ही खत्म हो जता है।

इसी कैम्प के साथ एक और भी शिविर है। वहाँ अचानक डाँट-डपट की आवाज आती है। बचाकर लाए गए लोग हैं जो कुछ कहना चाहते हैं। उन्हें डपट दिया जता है। हम समङा जते हैं कि यह कोई ‘छोटे कद’ का ‘बड़ा’ सरकारी अफसर है। पता चला यह बिहार सरकार का शिविर है जो लोगों को सहायता देने के लिए लगाया गया है। चिकित्सा सहायता देने वाले शिविर यूँ भी कम हैं, लेकिन ऐसे में ऐसा व्यवहार लोगों की पीड़ा बढ़ा देता है।

एनडीआरएफ के सूबेदार टी गंगना कहते हैं, ‘हम तो मरीज देखते हैं। दवा तो सरकार को देनी है। वह बहुत कम है। न्यूट्रीशन के लिए तो कुछ है ही नहीं। नवजात के लिए भी कुछ नहीं। प्रापर न्यूट्रीशन न मिला तो जच्चा-बच्चा कैसे जियेगा।’ गंगना सूनामी के बाद थाइलैण्ड में भी काम कर चुके हैं। कई और देशों में भी। बोले ‘ऐसी सरकारी उपेक्षा कहीं नहीं देखी। अपने देश में भी ऐसा खराब अनुभव कहीं नहीं हुआ।’

हाँ, यूनीसेफ के लोग जहाँ-तहाँ दवाइयाँ और टेंट बाँटते दिखाई दे जाते हैं। उनके टेंट ऐसे हैं जिनमें सुरक्षित प्रसव की भी व्यवस्था है। वे बड़ा काम, पूरी खामोशी से कर रहे हैं।