Saturday, August 30, 2008

बशीर बद्र की ग़ज़लें/नज़में

कभी यूँ भी आ मेरी आँख में के मेरी नज़र को ख़बर न हो
मुझे एक रात नवाज़ दे मगर उसके बाद सहर न हो

वो बड़ा रहीम-ओ-करीम है मुझे ये सिफ़त भी अता करे
तुझे भूलने की दुआ करूँ तो दुआ में मेरी असर न हो

मेरे बाज़ुओं में थकी थकी , अभी महव-ए-ख़्वाब है चाँदनी
न उठे सितारों की पालकी, अभी आहटों का गुज़र न हो

ये ग़ज़ल कि जैसे हिरन की आँखों में पिछली रात की चाँदनी
न बुझे ख़राबे की रोशनी, कभी बेचराग़ ये घर न हो

वो फ़िराक़ हो या विसाल हो, तेरी याद महकेगी एक दिन
वो गुलाब बनके खिलेगा क्या, जो चिराग़ बनके जला न हो

कभी धूप दे, कभी बदलियाँ, दिल-ओ-जाँ से दोनों क़ुबूल हैं
मगर उस नगर में न क़ैद कर जहाँ ज़िन्दगी की हवा न हो

कभी दिन की धूप में झूम के कभी शब के फूल को चूम के
यूँ ही साथ साथ चलें सदा कभी ख़त्म अपना सफ़र न हो

मेरे पास मेरे हबीब आ ज़रा और दिल के क़रीब आ
तुझे धड़कनों में बसा लूँ मैं के बिछड़ने का कभी डर न हो

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कहाँ आँसूओं की ये सौग़ात होगी
नये लोग होंगे नई बात होगी

मैं हर हाल में मुस्कुराता रहूँगा
तुम्हारी मुहब्बत अगर साथ होगी

चराग़ों को आँखों से महफ़ूस रखना
बड़ी दूर तक रात ही रात होगी

मुसाफ़िर हैं हम भी मुसाफ़िर हो तुम भी
किसी मोड़ पे फिर मुलाक़ात होगी

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कहीं चाँद राहों में खो गया कहीं चाँदनी भी भटक गई
मैं चराग़ वो भी बुझा हुआ मेरी रात कैसे चमक गई

मेरी दास्ताँ का उरूज था तेरी नर्म पलकों की छाँव में
मेरे साथ था तुझे जागना तेरी आँख कैसे झपक गई

कभी हम मिले तो भी क्या मिले वही दूरियाँ वही फ़ासले
न कभी हमारे क़दम बढ़े न कभी तुम्हारी झिझक गई

तुझे भूल जाने की कोशिशें कभी क़ामयाब न हो सकीं
तेरी याद शाख़-ए-गुलाब है जो हवा चली तो लचक गई

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कौन आया रास्ते में आईना ख़ाने हो गए
रात रौशन हो गैइ दिन भी सुहाने हो गए

क्यों हवेली के उजड़ने का मुझे अफ़सोस हो
सैकड़ों बेघर परिंदों के ठिकाने हो गए

ये भी मुम्किन है के उसने मुझको पहचाना न हो
अब उसे देखे हुए कितने ज़माने हो गए

जाओ उन कमरों के आईने उठाकर फेंक दो
वे अगर ये कह रहें हो हम पुराने हो गए

मेरी पलकों पर ये आँसू प्यार की तौहीन है
उनकी आँखों से गिरे मोती के दाने हो गए

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ख़ुदा हमको ऐसी ख़ुदाई न दे
कि अपने सिवा कुछ दिखाई न दे

ख़तावार समझेगी दुनिया तुझे
अब इतनी भी ज़्यादा सफ़ाई न दे

हँसो आज इतना कि इस शोर में
सदा सिसकियों की सुनाई न दे

अभी तो बदन में लहू है बहुत
कलम छीन ले रौशनाई न दे

मुझे अपनी चादर से यूँ ढाँप लो
ज़मीं आसमाँ कुछ दिखाई न दे

ग़ुलामी को बरकत समझने लगें
असीरों को ऐसी रिहाई न दे

मुझे ऐसी जन्नत नहीं चाहिये
जहां से मदीना दिखाई न दे

मैं अश्कों से नाम-ए-मुहम्मद लिखूँ
क़लम छीन ले रौशनी न दे

अभी तो बदन में लहू है बहुत
क़लम छीन ले रोशनाई न दे

ख़ुदा ऐसे इरफ़ान का नाम है
रहे सामने और दिखाई न दे

दोस्ती के मायने ...?

मांगनेसे तो खुदा भी मिल सकता है ,
तो ये रकीब क्या चीज़ है ?
तड़प हो गर पा लेने की ,
तो ये खुशियाँ भी क्या चीज़ है ??

दम भरते थे वो दोस्ती का हरदम ,
मायने भी क्या दोस्ती के क्या वो समज पाये है ?
खफा भी हुए है हम इसी बात पर ,
पर उफ़ ... शिकायत भी न कर पाये है ...

कारवाँ गुज़र गया

स्वप्न झरे फूल से,
मीत चुभे शूल से,
लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से,
और हम खड़ेखड़े बहार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे।

नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गई,
पाँव जब तलक उठे कि ज़िन्दगी फिसल गई,
पातपात झर गये कि शाख़शाख़ जल गई,
चाह तो निकल सकी न, पर उमर निकल गई,
गीत अश्क बन गए, छंद हो दफन गए,
साथ के सभी दिऐ धुआँधुआँ पहन गये,
और हम झुकेझुके, मोड़ पर रुकेरुके,
उम्र के चढ़ाव का उतार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे।

क्या शबाब था कि फूलफूल प्यार कर उठा,
क्या सुरूप था कि देख आइना सिहर उठा,
इस तरफ ज़मीन उठी तो आसमान उधर उठा,
थाम कर जिगर उठा कि जो मिला नज़र उठा,
एक दिन मगर यहाँ, ऐसी कुछ हवा चली,
लुट गयी कलीकली कि घुट गयी गलीगली,
और हम लुटेलुटे, वक्त से पिटेपिटे,
साँस की शराब का खुमार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे।

हाथ थे मिले कि जुल्फ चाँद की सँवार दूँ,
होठ थे खुले कि हर बहार को पुकार दूँ,
दर्द था दिया गया कि हर दुखी को प्यार दूँ,
और साँस यूँ कि स्वर्ग भूमी पर उतार दूँ,
हो सका न कुछ मगर, शाम बन गई सहर,
वह उठी लहर कि दह गये किले बिखरबिखर,
और हम डरेडरे, नीर नयन में भरे,
ओढ़कर कफ़न, पड़े मज़ार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे।

माँग भर चली कि एक,
जब नई नई किरन,
ढोलकें धुमुक उठीं,
ठुमक उठे चरनचरन,
शोर मच गया कि लो चली दुल्हन, चली दुल्हन,
गाँव सब उमड़ पड़ा, बहक उठे नयननयन,
पर तभी ज़हर भरी,
गाज एक वह गिरी,
पुँछ गया सिंदूर तारतार हुई चूनरी,
और हम अजानसे, दूर के मकान से,
पालकी लिये हुए कहार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे।

- गोपालदास नीरज

हां मैं बस ऐसा ही हूँ

बचपन के रंग बहुत गहरे है मन पर,
याद्दाश्त भी है कि खराब नहीं होती,
उमर के साथ भी, बस यही दुखाता है मन,
नही भुल पाता वह सीख,
आज के स्वार्थ भरे जमाने मे भी,
कि सुख सबमे बाटों,
और दुख दुसरो का भी लेकर,
अपने दुख के साथ मन मे छिपा लो ।

देखता आया हूं सामने मुस्कुराते चेहरे,
और हाथो में छिपे खंजर भी,
उन्हें भी लौटाया है मैंने फूल अपनी हंसी का,
नहीं हो पाता क्रूर उनसे भी,
जिन्होने चाहा कुचलना मेरा वजूद बार बार,
नही रख सकता मन में कुछ भी,
फिर भी है बहुत कुछ जिसको सहता हूँ,
जो भी मिलता है उससे हंस कर मिलता हूँ ।

यह सिद्धान्तो के बखान नहीं है,
न है गुणों के खजाने ।
ये आदतें है मेरी,
कि इनसे मजबूर हूँ मैं,
बस ऐसा ही हूँ,
हां मैं बस ऐसा ही हूँ ।

Wednesday, August 27, 2008

दिल के मरीज़ों को मिल सकती है राहत

वैज्ञानिक भ्रूण ऊतक के एक हिस्से से दिल की कोशिकाएँ बनाने के नज़दीक पहुँच गए हैं. इससे दिल के मरीज़ों का इलाज़ आसान हो सकता है. कनाडा, अमरीका और ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने भ्रूण से ली गईं स्टेम सेल से मानव हृदय की तीन तरह की कोशिकाओं को विकसित किया है. जब इन कोशिकाओं को एक बीमार चूहे में प्रत्यारोपित किया गया तो पाया गया कि उसके हृदय में उल्लेखनीय सुधार आया है. खोजाशोध के नतीज़ों को विज्ञान के मशहूर जर्नल “नेचर” में प्रकाशित किया गया है. शोधकर्ताओं ने इन कोशिकाओं को भ्रूण की कोशिकाओं से विकसित किया. स्टेम सेल में सही समय पर सही वृद्धि कारकों की आपूर्ति कर वैज्ञानिकों ने तीन अलग-अलग तरह की अपिरपक्कव हृदय कोशिकाओं के निर्माण को प्रोत्साहित किया. वैज्ञानिकों ने कार्डियोमायोसाइट्स, इंडोथीलियाल कोशिका और खून प्रवाहित करने वाली कोशिकाओं को स्टेम सेल से विकसित किया. ये तीनों कोशिकाएँ मानव हृदय के अहम घटक हैं.कनाडा के टोरंटो शहर स्थित मैक इवन सेंटर फॉर रिजनरेटिव मेडिसीन के डॉक्टर गॉर्डेन केलर ने बताया कि इन कोशिकाओं के निर्माण का मतलब यह हुआ कि हम दक्षता के साथ विभिन्न तरह के हृदय कोशिकाओं का निर्माण कर सकते हैं. इनका हम प्राथमिक और चिकित्सकीय शोध में उपयोग कर सकते हैं. हृदय की होगी मरम्मतइस महत्वपूर्ण शोध का लाभ यह होगा कि ये कोशिकाएं कैसे विकसित होती हैं, कैसे काम करती हैं और विभिन्न तरह की दवाओं के साथ कैसे प्रतिक्रिया करती हैं, यह जानने के लिए इन कोशिकाओं की अधिकाधिक आपूर्ति कर सकते हैं. भविष्य में कोशिकाएं हार्ट अटैक जैसी स्थिति में क्षतिग्रस्त हृदय कोशिकाओं की मरम्मत करने में काफ़ी मददगार साबित होंगी.ब्रिटिश हार्ट फ़ाउंडेशन के संयुक्त निदेशक जर्मी पियर्सन ने कहा कि यह शोध इस बात का स्पष्ट संकेत है कि हम उस दिन के करीब पहुंच रहे जब किसी मरीज़ के हृदय की क्षितग्रस्त कोशिकाओं की मरम्मत में स्टेम सेल का सफलतापूर्वक प्रयोग किया जाएगा.

Monday, August 25, 2008

एहसास

उम्मीदों को दम घुटते देखा है मैंनें
सपनों को टूटते देखा है मैंनें
आशाओं की पलकों पर
ओस सी मखमली
पल में ढुलक पड़ती
कपोलों के धरातल पर अपना अधिकार समझ
ये जान कि व्यर्थ हो जाएगी ये बूंद
अपने में समेटे एहसास को
ये बूंद हो सकती है निर्जीव
लेकिन एहसास नहीं
वो तो फिर जागेंगे
छूने को नया आकाश
फिर उमड़ेंगे
शायद फिर बरसने को
या फिर हवा के तेज़ बहाव के साथ आगे बढ जाने को
तलाशने नया धरातल
नयी उम्मीद, नयी आशा, नये एहसास के साथ................

" आज फिर"

आज फिर ये दो अखीयाँ भर आयी है
आज फिर तेरी याद चली आयी है .
दिल ने कहा ताजा कर लें वो सारे गम
आज फिर हमने जख्मों की किताब उठाई है.
लबों ने चाहा कर लें खामोशी से बातें हम
आज फिर हमने अपनी तबीयत बेहलाई है.
नज़र मचल गई है एक दीदार को तेरेआज
फिर तेरी तस्वीर नज़र आयी है.
रहा नही वायदों और वफाओं का वजूद कोई,
आज फिर हर एक चोट उभर आयी है.
आज फिर ये दो अखीयाँ भर आयी है,
आज फिर तेरी याद चली आयी है .
आज फिर हमने चाहा करें टूट कर प्यार तुम्हे ,
आज फिर दिल म वही आग सुलग आयी है.
आज फिर ये दो अखीयाँ भर आयी है,
आज फिर तेरी याद चली आयी है .
जरूरत क्या है
ख़ुद को मेरा दोस्त बनाने की जरूरत क्या है,
दोस्त बनके दगा देने की जरूरत क्या है,
अगर कहा होता तो हम ख़ुद ही चले जाते,
यू आपको चेहरा छुपाने की जरूरत क्या है,
सोचा था रहेंगे एक घर बनाके बड़े सुकून से,
न मिल सका सुकून तो महलों की जरूरत क्या है,
है कौन मेरा जो बहाता मेरी मंजार पर अश्क,
मुस्कुराते रहना तुम ,मुझे तेरे अश्को की जरूरत क्या है,
मैं तो जान भी दे सकती थी तुझपे ऐ दोस्त,
पर इस तरह मुझे आजमाने की जरुरत क्या है,
दबी हूँ मिटटी में इस कदर की बड़ा दर्द है,
मुझ पर फूल डाल कर और दबाने की जरुरत क्या है,
मुझ से कर के दोस्ती अगर पूरा हो गया हो शौक,
तो किसी
पतझर में सीलन...
पतझर में जो पत्ते बिछड़ जाते हैं अपने आशियाने से
वे पत्ते जाने कहाँ चले जाते हैं?
उन सूखे पत्तों की रूहें उसी आशियाने की दीवारों पे
सीलन की तरह बहती रहती है!
किसी भी मौसम में ये दीवारें सूखती नही!
ये नम बनी रहती
हैमौसम रिश्तों की रूहों को सूखा नही सकते....