Tuesday, March 3, 2009

विकास बनाम गठजोड़

बिहार के संसदीय चुनावों में यह शायद पहला मौका होगा जब चुनाव में सिर्फ जाति बाहुबल और गठजोड़ के अलावा भी कुछ नजर आएगा देश के अन्य प्रदेशों में बह रही और चुनावों में अपना असर दिखा चुकी विकास की बयार के झोंके यहां भी असर दिखा रहे हैं अच्छा तो यह है कि जनता भी विकास को कुछ मुद्दों से उपर मान रही है मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इसे अभी तक अपना मुद्दा मान रहे थे और उन्होंने काम-प्रचार साथ कर इसको बहस के रुप में बदलवा भी दिया लालू प्रसाद यादव भी बतौर रेलमंत्री ऐसा कुछ करने की कोशिशा कर गए कि बिहार को काफी कुछ मिला और प्रदेश में अपनी पार्टी के तीन कार्यकालों की छवि को साफ करने में लग गए प्रदेश के तीसरे बड़े नेता उर्वरक मंत्री रामविलास पासवान भी इसमें जुटे कारखाने लगाने की प्रक्रिया शुरु की और लगवाए भी पर संसदीय चुनाव में पहली बार ऐसा होगा कि जनता के सामने सिर्फ वोट बैंक का मुद्दा नहीं होगा इसे सड़क पुल एजुकेशन मकान और भयमुक्त राज्य की बातों पर भी गवाह होना पड़ रहा है ऐसा बहुत कम प्रदेशों में होगा जहां विरोधी दल भी अपने तरीके से विकास की बात कर रहा है लेकिन सबकुछ आसान नहीं होगा चुनाव जीतने के लिए जितने भी गठजोड़ किए जा सकते हैं किए जा रहे हैं प्रदेश में सत्तारुढ जद(यू)-भाजपा का गठजोड़ फेवीकोल सा है आडवाणी के मंदिर राग के बावजूद चालीस सीटों में से चौबीस और सोलह का अनुपात तक साथ मान्य है खेल तो दूसरे खेमे में है और अगर सबकुछ ठीक रहा तो सामने वाले का खेल बिगाड़ने की कुव्वत भी लालू-पासवान गठजोड़ में है लेकिन यहां दिक्कत सीटों के बंटवारे पर ही है लालू उदार नजर आ रहे हैं और पासवान कड़े फिलहाल वह सोलह पर डटे हैं कांग्रेस यहां पांच पर ही सिमटी रहेगी राष्ट्रीय जनता दल ने पिछले चुनाव में बाइस सीटें जीती थी इसलिए इससे कम पर लड़ना नहीं चाहती लालू की समस्या बाकी और साथी दलों को एडजस्ट करने की है पासवान थोड़ा हां थोड़ा ना के बाद तेरह तक आ सकते हैं लेकिन यह सच है कि समीकरण में पासवान आज यूपीए की जरुरत बन गए हैं दलित प्रधानमंत्री मायावती की कुर्सी के सामने उनकी कुर्सी रखने का काम चल रहा है पिछले लोकसभा-विधानसभा चुनाव में सीटों के हेरफेर के बावजूद जद(यू)-भाजपा का मत-प्रतिशत घटा-बढा नहीं पर लोकसभा से विधानसभा आते-आते लालू की पार्टी का सात प्रतिशत मत घटा और पासवान की पार्टी लोजपा का भी वोट बैंक तीन प्रतिशत बढ़ गया लेकिन दिक्कत यह है कि जद(यू)-भाजपा के साथ कोई और आने को तैयार नहीं और राजद-लोजपा कैसे पुराने साथियों को जोड़ेंगे यह बड़ा सवाल होगा प्रदेश के सोलह फीसदी मुसलमानों के एकमुश्त जाने की संभावनाएं अब भी लालू को कितना उत्साहित करेंगी यह भी वक्त तय करेगा लेकिन यह तय है कि इस बार चुनावी पंडितों के वोट प्रतिशत की जड़ता विकास के पुर्जे कुछ तोड़ेंगे जरुर
अकु श्रीवास्‍तव (हमलोग से साभार)