Saturday, October 13, 2012

फिल्म रिव्यू: मक्खी

भारतीय सिनेमा में एक नए सुपरहीरो का उदय हुआ है, लेकिन इस बार बॉलीवुड नहीं बल्कि दक्षिण भारतीय सिनेमा ने बाजी मारी है। जी हां, पुर्नजन्म से उपजा सुपरहीरो एक मक्खी है, जिसे मारना या मसलना आसान नहीं है। 30 करोड़ में बनी इस फिल्म ने दक्षिण में 125 करोड़ रु. का कारोबार किया है। फिल्म की कहानी एक दिलफेंक व्यवसायी सुदीप (सुदीप) पर आधारित है, जो हर महिला को अपना बनाना चाहता है। एक दिन उसकी नजर बिंदु (सामन्था) पर पड़ती है। जॉनी (नानी) नामक एक लड़का बिंदु से प्यार करता है। ये बात जब सुदीप को पता चलती है तो वह जॉनी को मार देता है। जॉनी एक मक्खी के रूप में पुर्नजन्म लेता है। वह सुदीप से बदला लेना चाहता है। किसी तरह से जॉनी बिंदु से भी संपर्क कर लेता है। जब बिंदु को सारी असलियत पता चलती है तो वह जॉनी के साथ मिलकर बदला लेने की योजना बनाती है। सुनने में यह कहानी, जितनी रोचक लगती है देखने में उससे भी ज्यादा मजा आता है। 70 एमएम पर एक मक्खी को इंसानों से भी बड़ा दिखाने के लिए ‘फोटो रियलिस्टक एनिमेशन’ का सहारा लिया गया है। यही विशेष प्रभाव इस फिल्म की खासियत नहीं है। एक मक्खी कैसे एक इंसान को परेशान कर सकती है और एक इंसान उससे बचने के लिए कैसे-कैसे उपाय करता है ये बातें फिल्म को रोचक बनाती हैं। रूमानी गीत-संगीत फिल्म का एक अन्य उज्ज्वल पहलू है। फिल्म अपने पहले दृश्य से ही बांधे रखती है। सुदीप का एक पूरे इंसान के तौर पर आतंक पूरी फिल्म में छाया रहता है। सामन्था की सौम्यता उत्तर भारतीय दर्शकों को अपनी ओर खींचती है। तो उधर, जॉनी का किरदार करने वाले अभिनेता नानी ने भी काफी अच्छा काम किया है। यही किरदार जब मक्खी के रूप में पुर्नजन्म लेता है तो लगता ही नहीं कि उसकी मौत हो चुकी है। फिल्म को रोचक बनाने के लिए एक मक्खी की कमांडो जैसा प्रशिक्षण देते भी दिखाया गया है। रसायनों से बचने के लिए मक्खी का मास्क पहनना और सुई को तलवार की तरह इस्तेमाल करना फिल्म में जान डाल देता है। ‘मक्खी’, मारधाड़, हंसी-मजाक, भावनात्मक दृश्यों, विशेष प्रभाव और बेहतरीन फिल्मांकन का एक खास तोहफा है, जिसे बच्चों के साथ मजे से देखा जा सकता है। चूकिए मत, जरूर देखिये। कलाकार: सुदीप, सामन्था, नानी निर्देशक: एस एस राजामोउली

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