Saturday, October 13, 2012

भूख का अंधेर

हम कह सकते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया की दूसरी तेजी से विकास करती हुई अर्थव्यवस्था है और हम आर्थिक महाशक्ति बनने की राह पर हैं। मगर सच्चई यह भी है कि भारत दुनिया के भूख सूचकांक (ग्लोबल हंगर इंडेक्स) में 79 देशों की सूची में 67वें नंबर पर है। हंगर इंडेक्स यह बताता है कि अपने नागरिकों को भरपेट भोजन और पोषण मुहैया कराने के मामले में किस देश का क्या रिकॉर्ड है। इस वर्ष के हंगर इंडेक्स में भारत की स्थिति ‘गंभीर’ देशों के बीच आती है। बाकी ‘गंभीर’ स्थिति वाले देश इथियोपिया और नाइजर वगैरह हैं, लेकिन ये भी हमसे बेहतर स्थिति में हैं। हमारे पड़ोसी नेपाल और बांग्लादेश भी ‘गंभीर’ देशों की सूची में हैं, लेकिन वे भी हमसे आगे हैं। पाकिस्तान और श्रीलंका तो बहुत बेहतर हैं। चीन उन देशों में है, जिनमें भूख कोई समस्या नहीं है। पाकिस्तान और नेपाल लगातार आंतरिक अशांति और अस्थिरता से जूझ रहे हैं तथा श्रीलंका में दशकों पुराना जातीय युद्ध अभी-अभी खत्म हुआ है। इसके बावजूद वे भारत से बेहतर हैं, जहां न जाने कब से गरीबी और भूख मिटाने के कार्यक्रमों पर अरबों रुपये खर्च किए जाते रहे हैं। एक और तथ्य महत्वपूर्ण है कि 1995-96 के बाद भारत में भूख और कुपोषण की स्थिति में कोई खास बदलाव नहीं आया। 1990 में भारत ‘अति गंभीर’ देशों की सूची में था। अगले पांच साल में तेजी से स्थिति बदली और हमारा सूचकांक 30.3 से सुधरकर लगभग 25 तक आ गया, लेकिन उसके बाद से यह सूचकांक यहीं ठहरा हुआ है, जबकि इस दौरान भारत की प्रति-व्यक्ति आय लगभग दोगुनी हो गई। इसका मतलब यह है प्रति-व्यक्ति आय के बढ़ने और आर्थिक विकास का कोई फायदा भूखों, गरीब लोगों और कुपोषित बच्चे तक नहीं पहुंचा है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स हर साल इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीटय़ूट द्वारा तैयार और जारी किया जाता है। इस हंगर इंडेक्स में कुपोषित आबादी, पांच साल से कम उम्र के कुपोषित बच्चों और बाल मृत्यु दर को भी शामिल किया जाता है। इस साल के इंडेक्स से पता चलता है कि दक्षिण एशिया में खाद्य और पोषण की स्थिति में ठहराव आ गया है। लगभग सभी देशों में कोई खास बेहतरी देखने को नहीं मिली। भारत में तो स्थिति कुछ खराब ही हुई है। अफ्रीका के देश अब भी ‘गंभीर’ और ‘अति गंभीर’ सूची में हैं, लेकिन उनकी स्थिति में तेजी से सुधार हो रहा है। इसकी वजहें हैं- कई पुराने युद्धों का खत्म होना, एड्स पर नियंत्रण और पोषण कार्यक्रमों की सफलता। भारत की स्थिति इस मायने में विशिष्ट है कि यहां राजनीतिक स्थिरता है, तेज आर्थिक विकास है, खाद्यान्न की कमी भी नहीं है। लेकिन पोषण व मानव विकास की कसौटियों पर हम अति गरीब देशों से भी पीछे हैं। हर साल गोदामों के भरे रहने और अनाज के सड़ने की खबरें आती हैं, लेकिन हम इस अनाज को भूखों के मुंह तक ले जाने का तरीका नहीं ढूंढ़ पाए। यह बार-बार कहा जाता है कि स्वास्थ्य पर हमसे कम खर्च करने के बावजूद बांग्लादेश और श्रीलंका स्वास्थ्य और मानव विकास के पैमानों पर हमसे कहीं बेहतर हैं। इसकी वजह ढूंढ़ी जानी चाहिए। गरीबों के लिए इस वक्त देश में जितनी बड़ी योजनाएं चलाई जा रही हैं और जितना पैसा खर्च किया जा रहा है, उतना शायद ही किसी और देश में कभी हुआ हो। यह भी सच है कि योजनाओं के आकार-प्रकार और खर्च के मुकाबले जितना कम फायदा भारत में हुआ है, उतना शायद ही कहीं हुआ हो। हमारे देश में न अनाज की कमी है, न साधनों की, फिर किस बात की कमी है, यह राजनेताओं और प्रशासकों को अपने आप से पूछना चाहिए। हिन्दुस्तान से

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