Sunday, September 9, 2007

अपने ही घर मे मैं मेहमान हो गया हूँ...

इन पुरानी राहों से परेशान हो गया हूँ,अपने ही घर मे मैं मेहमान हो गया हूँ,
एक नई दुनिया, नई मंज़िलों की तलाश मे निकला था घर से,आज उन पुरानी राहों की तरह मैं भी वीरान हो गया हूँ,
एक पल को लगा कि आसान होगा भुलाना पुरानी बातों को,पर हर वक्त सताती इन यादों से परेशान हो गया हूँ,
हर राह पर खुले दरवाज़ों के साथ एक नया घर नज़र आता था,वक्त के साथ लोगों की बेरुखी देख हैरान हो गया हूँ,
सोचा था कि अपनो के लिए खुशियाँ खोजूँगा,पर उन बहते आँसूओं मे बस पल दो पल की मुस्कान हो गया हूँ,
एक पंछी की तरह बादलों को छूने की चाह रखता था,आज इन ऊँचाईयों मे आ कर मानो खाली आसमान हो गया हूँ,
लोग कहते हैं कि ऐसे जीने की भी आदत हो जाएगी,ऐसी ज़िन्दगी की तलाश मे मै खुद ही श्मशान हो गया हूँ,
इन आँखों के खालीपन से मैं परेशान हो गया हूँआज अपने ही घर मे मैं मेहमान हो गया हूँ

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