Monday, April 25, 2011

माँ

लबों पर उसके कभी बददुआ नहीं होती
बस एक माँ है जो कभी खफ़ा नहीं होती।
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है माँ बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है।
मैंने रोते हुए पोछे थे किसी दिन आँसू मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुप्पट्टा अपना।
अभी ज़िंदा है माँ मे...री, मुझे कुछ भी नहीं होगा, मैं घर से जब निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है।
जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है, माँ दुआ करती हुई ख्वाब में आ जाती है।
ऐ अंधेरे,देख ले मुंह तेरा काला हो गया, माँ ने आँखें खोल दी घर में उजाला हो गया।
मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फरिश्ता हो जाऊं मां से इस तरह लिपट जाऊँ कि बच्चा हो जाऊँ।
मुनव्वर‘ माँ के आगे यूँ कभी खुलकर नहीं रोना जहाँ बुनियाद हो इतनी नमी अच्छी नहीं होती।
(मुनव्वर राणा

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