आईए आज मैं आपको अपने बारे में ही कुछ बताता हूं। करीब चौंतीस साल पहले अट्ठाईस जुलाई को लौहनगरी के नाम से जाना जाने वाले शहर जमशेदपुर के एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्म हुआ था। पिता सूर्य देव सिंह टेल्को में काम करते थे। परिवार में दूसरे बच्चे के रुप में लडके को पाकर माता-पिता की खुशी की सीमा नहीं रही थी। अमूमन हर परिवार की तरह यहां भी बधाईयां गाई गई। पंडितों ने बताया कि बालक बडा होकर काफी नाम करेगा। पिता का वेतन कम होने के कारण बचपन से ही अभाव में जीना पडा। तीन भाईयों सहित पूरे परिवार का पालन करने में काफी कठिनाई का सामना करना पडता था। ऐसे में अभाव की आदत पड गई थी। बचपन से ही पढने में अव्वल रहने के कारण घर में सबका लाडला भी था। आठवीं क्लास तक तो सबकुछ ठीक चलता रहा और मैं अव्वल आता रहा मगर नवीं में आकर गलत संगत में पड गया और परिणाम खिसककर सांतवें स्थान पर चला गया। दसवीं में यह खिसककर चौदहवें पर चला गया। बोर्ड की परीक्षा में दूसरा स्थान पर आने से पिता के सपनों को आघात लगा। इंटरमीडिएट में घर वालों की इच्छा थी कि साईंस पढूं मगर अपनी रूचि के कारण आर्ट में प्रवेश लिया। अब तक संगति इतनी बिगड चुकी थी कि दिनभर पढाई की बजाय घर से बाहर रहने में मजा आता था। नतीजा हुआ कि इंटरमीडिएट किसी तरह पास कर सका।
शेष कल
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